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जैन परम्परा का इतिहास
मे उनकी करुणा की भावना फैल रही है, इसीलिए उनके व्यक्तित्व में किसी प्रकार को न्यूनता होगी, ऐसा मैं नही मानता हूँ। महापुरुषो की भिन्न-भिन्न वृत्तियाँ होती है, लेकिन कहना पड़ेगा कि गौतम बुद्ध को व्यावहारिक भूमिका छू सकी और महावीर को व्यावहारिक भूमिका छू नही सकी। उन्होने स्त्री-पुरुषो मे तत्त्वतः भेद नही रखा । वे इतने दृढप्रतिज्ञ रहे कि मेरे मन में उनके लिए एक विशेष ही आदर है । इसी मे उनकी महावीरता है।
रामकृष्ण परमहंस के सम्प्रदाय में स्त्री सिर्फ एक ही थी और वह थी श्री शारदा देवी, जो रामकृष्ण परमहस की पली थी और नाममात्र की ही पत्नी थी । वैसे तो वह उनकी माता ही हो गई थी और सम्प्रदाय के सभी भाइयो के लिए वह मातृ-स्थान में ही थी । परन्तु उनके सिवा और किसी स्त्री को दीक्षा नही दी गई। ____ महावीर स्वामी के बाद २५०० साल हुए, लेकिन हिम्मत नही हो सकती थी कि बहनो को दीक्षा दे । मैंने सुना कि चार साल पहले रामकृष्ण परमहस मठ मे स्त्रियो को दीक्षा दी जाय - ऐसा तय किया गया। स्त्री और पुरुष का आश्रम अलग रखा जाय, यह अलग बात है लेकिन अब तक स्त्रियो को दीक्षा ही नही मिलती थी, वह अब मिल रही है । इस पर से अंदाज लगता है कि महागीर ने २५०० साल पहले उसे करने में कितना बड़ा पराक्रम किया । ___गृहस्य उपासक और उमासिकाएँ, श्रावक और श्राविकाएँ कहलाए । आनन्द आदि १० प्रमुख श्रावक बने । ये बारह नती थे। इनकी जीवन-चर्या का वर्णन करने वाला एक अग ( उपासक दशा ) है । जयन्ती आदि श्राविकाएँ थी, जिनके प्रौढ़ तत्त्व-ज्ञान को सूचना भगवती से मिलती है 3° । धर्म-आराधना के लिए भगवान का तीर्थ सचमुच तीर्थ बन गया । भगवान् ने तीर्थ चतुष्टय ( साधु-साध्वी, श्रावक-श्राविका ) को स्थापना की, इसलिए वे तीर्थंकर कहलाए। श्रमण-संघ-व्यवस्था
भगवान ने श्रमण-सघ की बहुत ही सुदृढ़ व्यवस्था की। अनुशासन की