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जैन परम्परा का इतिहास धधा (३) शाकट-कर्म - गाड़ी आदि वाहन बनाने बेचने या चलाने का काम करना (४) भाटक कर्म--गाड़ा वगैरह वाहन भाड़े पर चलाने का काम (५) स्फोट-कर्म-जिसमे भूमि खोदने, पर्वत आदि स्कोट करने का काम हो (६) दन्त-वाणिज्य हाथी-दांत आदि प्राणियो के अवयवो का व्यापार (७) लाक्षावाणिज्य - लाख वगैरह का व्यापार (८) रस-वाणिज्य -मदिरा वगैरह का व्यापार (8) केशवाणिज्य–केश का व्यापार (१०) विष-वाणिज्यजहरीली वस्तुएं और शस्त्रादि का व्यापार (११) यन्त्रपीलन-कर्म-तिल, ऊख वगैरह पीलने का काम (१२) निर्ला छन कर्म-बैल आदि को नपुसक करने का काम (१३) दावाग्नि वापन---वन आदि को अग्नि लगा साफ करने का धन्धा (१४) सरदहतालाब-शोषण-सरोवर, दह, तालाब आदि के शोपण का काम और (१५) असतीजनपोषण-आजीविका के लिए वेश्यादि का पोषण अथवा पक्षियो का खेल-तमाशा, मांस, अण्डे आदि के व्यापार के लिए पोषण ।
आठवें अनर्थ विरमण व्रत के पाँच अतिचार है, जिन्हे श्रमणोपासक को जानना चाहिए और जिनका आचरण नही करना चाहिए । वे इस प्रकार है :(१) कन्दर्प-कामोत्तेजक बातें करना (२) कौत्कुच्य-भौहे, नेत्र, मुह, हाथ, पैर आदि को विकृत कर परिहास उत्पन्न करना (३) मौखर्य-वाचालता, असबद्ध आलाप (४) सयुक्ताधिकरण-हिंसा के साधन शस्त्रादि-तैयार रखना और (५) उपभोग परिभोगा तिरिक्तता-उपभोग परिभोग वस्तुओ की अधिकता। ___ नववे सामायिक नत के पाँच अतिचार है, जो श्रमणोपासक को जानने चाहिए और जिनका आचरण नही करना चाहिए। वे इस प्रकार है :(१) मनोदुष्प्रणिधान - मन की बुरी प्रवृत्ति (२) वाग्दुष्प्रणिधान-वाणी की दुष्प्रवृत्ति तथा (३) कायदुष्प्रणिधान-काया की दुष्प्रवृत्ति की हो (४) स्मृतिअकरण--सामायिक की स्मृति न रखना और (५) अनवस्थितकरण-सामायिक व्यवस्थित-नियत रूप से न क ना ।
दसर्वे देशावकाशिक व्रत के पॉच अतिचार श्रमणोपासक को जानने चाहिए और उनका आचरण नही करना चाहिए। वे इस प्रकार है :-(१) आनयन