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जैन परम्परा का इतिहास
४ — शैक्ष बहुमान - शिक्षा ग्रहण करने वाले और नव दीक्षित साधुओं का
सत्कार करना ।
५- दानपति श्रद्धा वृद्धि--दान देने मे दाता की श्रद्धा बढाना |
६ - बुद्धिबलवद्धन -- अपने शिष्यो की बुद्धि तथा आध्यात्मिक शक्ति को
बढाना
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शिष्य के लिए चार प्रकार की विनय प्रतिपत्ति आवश्यक होती है :
१- उपकरण- उत्पादनता २ – सहायता ३ - वर्ण-सज्वलनता ४-भारप्रत्यव
रोहणता ।
उपकरण- उत्पादन के चार प्रकार है :
( १ ) अनुत्पन्न उपकरणो का उत्पादन |
( २ ) पुराने उपकरणों का सरक्षण और संघ गोपन करना ।
( ३ ) उपकरण कम हो जाए तो उनका पुनरुद्धार करना ।
( ४ ) यथाविधि सविभाग करना ।
सहायता के चार प्रकार है :
(१) अनुकूल बचन बोलना ।
( २ ) काया द्वारा अनुकूल सेवा करना । ३ ) जैसे सुख मिले वैसे सेवा करना ।
( ४ ) अकुटिल व्यवहार करना । वर्ण - सज्वलनता के चार प्रकार है ·- ( १ ) यथार्थ गुणो का वर्णन करना ।
( २ ) अवर्णवादी को निरुत्तर करना ।
( ३ ) यथार्थ गुण वर्णन करने वालो को बढावा देना ।
( ४ ) अपने से वृद्धो की सेवा करना ।
भारप्रत्यवरोहणता के चार प्रकार है
( १ ) निराधार या परित्यक्त साधुओ को आश्रय देना ।
( २ ) नव दीक्षित साधु को आचार - गोचर को विधि सिखाना |
( ३ ) साधर्मिक के रुग्ण हो जाने पर उसकी यथाशक्ति सेवा करना |
( ४ ) साधर्मिको मे परस्पर कलह उत्पन्न होने पर किसी का पक्ष लिए ।