Book Title: Jain Parampara ka Itihas
Author(s): Nathmalmuni
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

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Page 152
________________ १४२ ] जैन परम्परा का इतिहास ४ — शैक्ष बहुमान - शिक्षा ग्रहण करने वाले और नव दीक्षित साधुओं का सत्कार करना । ५- दानपति श्रद्धा वृद्धि--दान देने मे दाता की श्रद्धा बढाना | ६ - बुद्धिबलवद्धन -- अपने शिष्यो की बुद्धि तथा आध्यात्मिक शक्ति को बढाना 1 शिष्य के लिए चार प्रकार की विनय प्रतिपत्ति आवश्यक होती है : १- उपकरण- उत्पादनता २ – सहायता ३ - वर्ण-सज्वलनता ४-भारप्रत्यव रोहणता । उपकरण- उत्पादन के चार प्रकार है : ( १ ) अनुत्पन्न उपकरणो का उत्पादन | ( २ ) पुराने उपकरणों का सरक्षण और संघ गोपन करना । ( ३ ) उपकरण कम हो जाए तो उनका पुनरुद्धार करना । ( ४ ) यथाविधि सविभाग करना । सहायता के चार प्रकार है : (१) अनुकूल बचन बोलना । ( २ ) काया द्वारा अनुकूल सेवा करना । ३ ) जैसे सुख मिले वैसे सेवा करना । ( ४ ) अकुटिल व्यवहार करना । वर्ण - सज्वलनता के चार प्रकार है ·- ( १ ) यथार्थ गुणो का वर्णन करना । ( २ ) अवर्णवादी को निरुत्तर करना । ( ३ ) यथार्थ गुण वर्णन करने वालो को बढावा देना । ( ४ ) अपने से वृद्धो की सेवा करना । भारप्रत्यवरोहणता के चार प्रकार है ( १ ) निराधार या परित्यक्त साधुओ को आश्रय देना । ( २ ) नव दीक्षित साधु को आचार - गोचर को विधि सिखाना | ( ३ ) साधर्मिक के रुग्ण हो जाने पर उसकी यथाशक्ति सेवा करना | ( ४ ) साधर्मिको मे परस्पर कलह उत्पन्न होने पर किसी का पक्ष लिए ।

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