________________
१४६]
जैन परम्परा का इतिहास
(२) अन्तरात्मा-जो देह और आत्मा को पृथक् जानता हो, सम्यग-दृष्टि ।
(३) परमात्मा-जो चारित्र-सम्पन्न हो । नमस्कार महामन्त्र मे पॉच परमात्माओ को नमस्कार किया जाता है ।
यह आध्यात्मिक और त्याग-प्रधान संस्कृति का एक संक्षिप्त-सा रूप है। इसका सामाजिक जीवन पर भी प्रतिबिम्ब पड़ा है।
जैनपर्व
१-अक्षय तृनीया २-पर्युषण व दसलक्षण ३-महावीर जयन्ती ४-दीपावली
पर्व अतीत की घटनाओ के प्रतीक होते है । जैनो के मुख्य पर्व इक्षु तृतीया या अक्षय तृतीया, पर्युषण व दस लक्षण, महावीर जयन्ती और दीपावली है।
अक्षय तृतीया का सम्बन्ध आद्य तीर्थकर भगवान् ऋषभनाथ से है। उन्होने वैशाख सुदी तृतीया के दिन बारह महीनो की तपस्या का इक्षु-रस से पारणा किया। इसलिए वह इक्षु तृतीया या अक्षय तृतीया कहलाता है।
पर्युषण पर्व आराधना का पर्व है । भाद्र बदी १२ या १३ से भाद्र सुदी ४ या ५ तक यह पर्व मनाया जाता है। इसमें तपस्या, स्वाध्याय, ध्यान आदि आत्म-शोधक प्रवृत्तियो की आराधना की जाती है। इसका अन्तिम दिन सम्वत्सरी कहलाता है। वर्ष भर की भूलो के लिए क्षमा लेना और क्षमा देना इसकी स्वयभूत विशेषता है । यह पर्व मैत्री और उज्ज्वलता का संदेशवाहक है ।
दिगम्बर-परम्परा में भाद्र शुक्ला पचमी से चतुर्दशी तक दस लक्षण पर्व मनाया जाता है। इसमें प्रतिदिन क्षमा आदि दस धर्मो मे एक-एक धर्म की आराधना की जाती है। इसलिए इसे दस लक्षण पर्व कहा जाता है।
महावीर जयन्ती चैत्र शुक्ला १३ को भगवान महावीर के जन्म दिवस के उपलक्ष में मनाई जाती है।
दीपावली का सबंध भगवान महावीर के निर्वाण से है। कार्तिकी अमा