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जैन परम्परा का इतिहास
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२५ -- इन्द्रभूति, अग्निभूति, वायुभूति व्यक्त, सुधर्मा, मण्डित, मौर्यपुत्र,
अकम्पित, अचलनाता, मेतार्य, प्रभास ।
२६- आचा० २।२४
२७ - आचा० ११५ १११४४
२५- भग० १११
२६- आचा० ११५।५।१६४
३० --- अग्निभूति - कर्म है या नही ?
वायुभूति - शरीर और जीव एक है या भिन्न ?
व्यक्त - पृथ्वी आदि भूत है या नही ?
मुधर्मा - यहाँ जो जैसा है वह परलोक मे भी वैसा होता है या नही ? मडित-पुत्र-वन्ध मोक्ष है या नही ?
मौर्य - पुत्र – देव है या नही ?
अकम्पित - नरक है या नही ?
अचल भ्राता -- पुण्य ही मात्रा भेद से सुख-दुख का कारण बनता है या पाप उससे पृथक है ?
तार्थ - आत्मा होने पर भी परलोक है या नही ?
प्रभास - मोक्ष है या नहीं ?
( वि० भा० १५४६ - २०२४ )
३१ - श्र० वर्ष १ अंक ९ पृ० ३७-३६
३२- भग० १२११
३३ - जिनकी वाचना समान हो उनका समूह गण कहलाता है। आठवें - नवें तथा दसवें ग्यारहवें गणधरो की वाचना समान थी, इसलिए उनके गण
दो भी माने जाते है | सम०
३४- स्था० वृ० ३।३।१७७
३५ व्यव०
३६ - नं० ४६
३७ - सम० ११४
३५ सम० ११५