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________________ जैन परम्परा का इतिहास [ १५३ २५ -- इन्द्रभूति, अग्निभूति, वायुभूति व्यक्त, सुधर्मा, मण्डित, मौर्यपुत्र, अकम्पित, अचलनाता, मेतार्य, प्रभास । २६- आचा० २।२४ २७ - आचा० ११५ १११४४ २५- भग० १११ २६- आचा० ११५।५।१६४ ३० --- अग्निभूति - कर्म है या नही ? वायुभूति - शरीर और जीव एक है या भिन्न ? व्यक्त - पृथ्वी आदि भूत है या नही ? मुधर्मा - यहाँ जो जैसा है वह परलोक मे भी वैसा होता है या नही ? मडित-पुत्र-वन्ध मोक्ष है या नही ? मौर्य - पुत्र – देव है या नही ? अकम्पित - नरक है या नही ? अचल भ्राता -- पुण्य ही मात्रा भेद से सुख-दुख का कारण बनता है या पाप उससे पृथक है ? तार्थ - आत्मा होने पर भी परलोक है या नही ? प्रभास - मोक्ष है या नहीं ? ( वि० भा० १५४६ - २०२४ ) ३१ - श्र० वर्ष १ अंक ९ पृ० ३७-३६ ३२- भग० १२११ ३३ - जिनकी वाचना समान हो उनका समूह गण कहलाता है। आठवें - नवें तथा दसवें ग्यारहवें गणधरो की वाचना समान थी, इसलिए उनके गण दो भी माने जाते है | सम० ३४- स्था० वृ० ३।३।१७७ ३५ व्यव० ३६ - नं० ४६ ३७ - सम० ११४ ३५ सम० ११५
SR No.010279
Book TitleJain Parampara ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmalmuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year
Total Pages183
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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