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जैन परम्परा का इतिहास
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आचार-विनय के चार प्रकार है :(१) सयम सामाचारी-सयम के आचरण की विधि । (२) तप सामाचारी-तपश्चरण की विधि । ( ३ ) गण सामाचारी - गण की व्यवस्था की विधि । (४) एकाकी विहार सामाचारी-एकल विहार की विधि । श्रुत-विनय के चार प्रकार है - (१) सूत्र पढाना। (२) अर्थ पढाना । ( ३ ) हितकर विषय पढाना । (४) नि शेप पढ़ाना-विस्तार पूर्वक पढाना । विक्षेपणा-विनय के चार प्रकार है :(१) जिसने धर्म नही देखा, उसे धर्म-मार्ग दिखा कर सम्यक्त्वी बनाना । (२) जिसने धर्म देखा है, उसे साधर्मिक वनाना । (३ ) धर्म से गिरे हुए को धर्म मे स्थिर करना । (४) धर्म-स्थित व्यक्ति के हित- सुख और मोक्ष के लिए तत्पर रहना। दोप-निर्घात-विनय के चार प्रकार है :(१) कुपित के क्रोध को उपशान्त करना । (२) दुष्ट के दोप को दूर करना । ( 3 ) आकांक्षा का छेदन करना ।
(४) आत्मा को श्रेष्ठ मार्ग में लगाना । आचार्य के छह कर्तव्य
संघ की व्यवस्था के लिए आचार्य को निम्नलिखित छह वातो का ध्यान रखना चाहिए :१- सूत्रार्थ स्थिरीकरण - सूत्र के विवादग्रस्त अर्य का निश्चय करना अथवा
सूत्र और अर्थ मे चतुर्विध-सघ को स्थिर करना। २-विनय-सबके साथ नम्रता से व्यवहार करना । ३- गुरु-पूजा-अपने बड़े अर्थात् स्थविर साधुओ की भक्ति करना ।