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जैन परम्परा का इतिहास च्छेद- चमड़ी या अवयवों का छेदन करना ( ४ ) अतिभार-अधिक भार लादना ( ५ ) भक्तपानविच्छेद-भोजन-पानी का विच्छेद करना-(आश्रित प्राणी को भोजन-पानी न देना)
द्वितीय स्थूल मृषावाद-विरमण व्रत के पाँच प्रधान अतिचार है, जिन्हे श्रमणोपासक को जानना चाहिए और जिनका आचरण नही करना चाहिए । वे इस प्रकार है :-(१) सहसाऽभ्याख्यान-सहसा ( बिना आधार ) मिथ्या आरोप करना (२) रहस्याऽभ्याख्यान-गुप्त मन्त्रणा करते देख कर आरोप लगाना अथवा रहस्य प्रकट करना (३) स्वदार-मन्त्रभेद-अपनी पत्नी का मर्म प्रकट करना (४) मृषोपदेश-असत्य का उपदेश देकर उसकी ओर प्रेरित करना और (५) कूट लेखकरण-झूठे खत-पत्र बनाना।
तीसरे स्थूल अदत्तादान-विरमण व्रत के पाँच प्रधान अतिचार है। श्रमणोपासक को उन्हे जानना चाहिए और उनका आचरण नही करना चाहिए । वे इस प्रकार है:-(१) स्तेनाहृत-चुराई हुई वस्तु खरीदना (२) तस्करप्रयोग-चोर की सहायता करना या चोरो को रख कर चोरी कराना (३) राज्य के आयात-निर्यात और जकात कर आदि के नियमो के विरुद्ध व्यवहार करना अथवा परस्पर-विरोधी राज्यो के नियम का उल्लंघन करना (४) कूट-तोल कूटमान-खोटे तोल-माप रखना और (५) तत् प्रतिरूपकव्यवहार-सदृश वस्तुओ का व्यवहार-उत्तम वस्तु मे हल्की का मिश्रण करना या एक वस्तु दिखा कर दूसरी देना।
चतुर्थ स्थूल मैथुन-विरमण व्रत के पाँच अतिचार श्रमणोपासक को जानने चाहिए और उनका आचरण नही करना चाहिए । वे इस प्रकार है :
(१) इतरपरिगृहीतागमन-थोड़े समय के लिए दूसरे द्वारा गृहीत अविवाहित स्त्री के साथ आलाप-सलापरूप गमन करना (२) अपरिगृहीतागमन-किसी के द्वारा अगृहीत वेश्या आदि से आलाप-सलापरूप गमन करना (३) अनग-क्रीड़ा ---कामोत्तेजक आलिंगनादि क्रीडा करना, अप्राकृतिक क्रीड़ा। (४) पर विवाहकरण-पर-सतति का विवाह करना-और (५) कामभोगतीवाभिलाषा-काम-भोग की तीन आकांक्षा रखना।
स्थूल परिग्रह-परिमाण व्रत के पाँच अतिचार श्रमणोपासक को जानने चाहिए और उनका आचरण नही करना चाहिए । वे इस प्रकार है :