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जैन परम्परा का इतिहास
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वे बारह व्रती श्रावक थे । उनके सात कन्याएँ थी । वे जैन के सिवाय किसी दूसरे के साथ अपनी कन्याओं का विवाह नही करते थे ।
श्रेणिक ने चेलणा को कूटनीतिक ढंग से व्याहा था । चेटक के सभी जामाता प्रारम्भ से ही जैन थे । श्रेणिक पीछे जैन बन गया ।
चेटक की पुत्रियों
चेटक के जामाताओं
के नाम
के नाम
प्रभावती
पद्मावती
मृगावती
शिवा
ज्येठा
सुज्येष्ठा
चेलणा
उदायन
दधिवाहन
शतानीक
उनकी राजधानी
के नाम
सिधु सौवीर
चम्पा
कौशम्बी
अवन्ती
चण्ड प्रद्योत
C
भगवान् के भाई नन्दिवर्धन
( साध्वी बन गई )
बिम्बसार (श्रेणिक )
कुण्डग्राम
मगध
चेटक का भीषण सग्राम हुआ था । संग्राम पालन करते थे । अनाक्रमणकारी
पर प्रहार नही
करते थे । इनके
साथ
अपने दौहित्र कोणिक के भूमि में भी वे अपने व्रतो का करने थे । एक दिन में एक बार से अधिक शस्त्र प्रयोग नही गणराज्य मे जैन-धर्म का समुचित प्रसार हुआ । गणराज्य के अठारह सदस्य नृप नौ मल्लवी और नौ लिच्छवी भगवान् के निर्वाण के समय वही पौषध किये हुए थे ।
राजर्षि
में
द
भगवान् के पास आठ राजा दीक्षित हुए- इसका उल्लेख स्थानांग सूत्र मिलता है । उनके नाम इस प्रकार है: - (१) वीरांगक ( २ ) वीरयशा ( ३ ) सजय (४) एणेयक ( ५ ) सेय ( ६ ) शिव ( ७ ) उदायन ) शंख-काशीवर्धन | इनमे वीरांगक, वीरयशा और सजय - ये प्रसिद्ध है । टीकाकार अभय - देव सूरि ने इसके अतिरिक्त कोई विवरण प्रस्तुत नही किया है । एणेयक श्वेतविका नरेश प्रदेशी का सम्बन्धी कोई राजा था । सेय अमलकत्या नगरी का अधिपति था। शिव हस्तिनापुर का राजा था । उसने सोचा - मे वैभव से सम्पन्न हूँ, यह मेरे पूर्वकृत शुभ कर्मों का फल है । मुझे वर्तमान में