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जैन परम्परा का इतिहास
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सत्या मे लिखे गए । जो सस्कृत नही जानते है, उनका भी सस्कृत के प्रति जो आकर्षग है उसका एकमात्र यही कारण है कि उसमे महापुरुषो के जीवन-चरित्र सकलित किये गए है। ___नीति-शास्त्र और अर्थ-शास्त्र के जो ग्रन्थ लिखे गए, उनकी भापा ने भी लोगो को अपनी ओर अधिक आकृष्ट किया। सस्कृत-साहित्य की रसभरी सूक्तियां और अपनी स्वतन्त्र विशेषताए रखने वाले सिद्धान्त जन-जन की जवान पर आज भी अपना स्थान बनाये हुए है।
आचार्य हेमचन्द्र ने अर्हन्तीति नामक जो एक सक्षित ग्रन्य बनाया है, उसमे कुछ एक ऐसे तत्त्व है जो युद्ध के नगे ने अपने विवेक को खो बैठे है, उनके भी विवेक को जगाने वाले है । उदाहरण के तौर पर एक श्लोक पढिए
सन्दिग्यो विजयो युद्ध, ऽसन्दिग्यः पुरुपक्षयः ।
सत्स्वन्येविलुपायेपु, भूपो युद्ध विवर्जयेत् ८ ॥ व्याकरण भापा का आधार होता है । गुजरात और वगाल मे पाणिनिव्याकरण का प्रचलन बहुत थोडा था । वहाँ पर कालापक और कातन्त्र व्याकरण को मुखता थी। किन्तु ये दोनो व्याकरण सर्वाङ्गपूर्ण और सांगोपांग नही थे। आचार्य हेमचन्द्र ने सांगोपांग 'सिद्ध हेम शब्दानुशासन' नामक व्याकरण की रचना को । उनका गौरव बड़े श्रद्धा भरे गन्दो मे गाया गया है- •
किं स्तुमः शब्दपायोघेहेमचन्द्रयतेमतिम् ।
एकेनापि हि येनेहक, कृत शब्दानुशासनम् ॥ व्याकरण के पाँच अग है ! सूत्र, गणपाठ सहित वृत्ति, धातुपाठ, उणादि और लिङ्गानुशासन । इन सब अगो की स्वय अकेले हेमचन्द्र ने रचना करके सर्वथा स्वतन्त्र व्याकरण बनाया । जैनो के दूसरे भी चार व्याकरण हैं-विद्यानन्द, मुण्टि, जैनेन्द्र और गाकटायन ।
अठारहवी शताब्दी के वाद संस्कृत का प्रवाह सर्वथा रुक गया हो, यह बात नहीं । वीसवी सदी मै तेरापंथ सम्प्रदाय के मुनि श्री चौथमलजी ने 'भिक्षु गन्दानुशासन' नामक महाव्याकरण की रचना की। आचार्य लावण्य सूरि ने