________________
जैन परम्परा का इतिहास
c
:
- L. ६६
आगम-सकलन का दूसरा प्रयल वीर-निर्वाण ८२७ और ८४० के बीच हुआ । आचार्य स्कन्दिल के नेतृत्व मे आगम लिखे गए। यह कार्य मथुरा मे हुआ । इसलिए इसे मायुरी-वाचना कहा जाता है। इसी समय वल्लभी में आचार्य नागार्जुन के नेतृत्व मे आगम सकलित हुए । उसे वल्लभी-वाचना या नागार्जुन वाचना कहा जाता है।
वीर-निर्वाण को १० वी शताब्दी-माथुरी-वाचना के अनुयायियो के अनुसार वीर-निर्वाण के ६८० वर्ष पश्चात् तया वल्लभी-वाचना के अनुयायियो के अनुसार वीर-निर्वाण के ६१३ वर्ष पश्चात् देवर्द्धिगणी ने वल्लभी मे फिर से आगमो का व्यवस्थित लेखन किया। इसके पश्चात् फिर कोई सर्वमान्य वाचना नही हुई । वीर की दसवी शताब्दी के पश्चात् पूर्वज्ञान की परम्परा विच्छिन्न हो गई । आगम-विच्छेद का क्रम
भद्रबाहु का स्वर्गवास वीर-निर्वाण के १७० वर्प पश्चात् हुआ । आर्थीदृष्टि से अन्तिम चार पूर्वो का विच्छेद इसी समय हुआ। दिगम्बर परम्परा के अनुसार यह वीर-निर्वाण के १६२ वर्ष पश्चात् हुआ।
गान्दी दृष्टि से अन्तिम चार पूर्व स्थूलभद्र की मृत्यु के समय वीर-निर्वाण के २१६ वर्प पश्चात् विच्छिन्न हुए । इनके बाद दशपूर्वो की परम्परा आर्यव्रत तक चली। उनका- स्वर्गवास वीर-निर्वाण के ५७१ ( विक्रम संवत् १०१ ) वर्ष पश्चात् हुआ । उसी समय दगवां पूर्व विच्छिन्न हुआ। नवां पूर्व दुर्वलिका पुष्यमित्र की मृत्यु के साय-वीर निर्वाण ६०४ वर्ष ( वि० सवत् १३४ ) मे लुप्त हुआ।
पूर्वज्ञान का विच्छेद वीर-निर्वाण (वि० सवत् ५३०) के हजार वर्ष पश्चात् हुआ।
दिगम्वर मान्यता के अनुसार वीर-निर्वाण के ६२ वर्ष तक केवल ज्ञान रहा । अन्तिम केवली जम्बूस्वामी हुए। उनके पश्चात् १०० वर्ष तक चोदह पूर्वो का जान रहा । अन्तिम चतुर्दश पूर्वी भद्रवाहु हुए। उनके पश्चात् १५३ वर्ष तक दशपूर्व रहे । धर्मसेन अन्तिम दशपूर्वी थे। उनके पश्चात् ग्यारह अगो की
-
-