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जैन परम्परा का इतिहास
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७–'युष्मत' शब्द का षष्ठी का एकवचन संस्कृत की तरह 'तव' और 'अस्मत्' का षष्ठी का बहुवचन 'अस्माक' अर्धमागधी में पाया जाता है, जो महाराष्ट्री मे नही है। आख्यात-विभक्ति
१–अर्धमागधी मे भूतकाल के बहुवचन मे 'इसु' प्रत्यय है, जैसे - पुच्छिसु, गच्छियु, आमासिम इत्यादि । महाराष्ट्री में यह प्रयोग लुप्त हो गया है। धातु-रूप
१-अर्धमागवी मे आइक्खइ, कुचइ, भुवि, होक्खती, वूया, अब्बवी, होत्या, हुत्या, पट्टारेत्या, आधं, दुरूहइ, विगिंचए, तिवायए, अकासी, तिउट्टई, तिउट्टिज्जा, पडिसघयाति, सारयती, धेच्छिइ, समुच्छिहिंति, आहसु प्रभृति प्रभूत प्रयोगो मे धातु की प्रकृति, प्रत्यय अथवा-ये दोनो जिस प्रकार में पाये जाते है, महाराष्ट्री मे वे भिन्न-भिन्न प्रकार के देखे जाते है। धातु-प्रत्यय
१-अर्वमागधी मे 'वा' प्रत्यय के रूप अनेक तरह के होते है:(क) टटु जैसे-कट्ट, सदहटु, अवहट्ट इत्यादि ।
(ख) इत्ता, एत्ता, इत्ताण और एत्ताण: यथा-चइत्ता, विडट्टिता, पासित्ता, करेत्ता, पासित्ताण, करेत्ताण इत्यादि ।
(ग) इत्तु यया-दुरुहित्तु, जाणित्तु, वधित्तु, प्रभृति । (घ) च्चाः जैसे किच्चा, णञ्चा, सोच्वा, भोच्चा, चेच्या आदि । (ड) इयाः यया--परिजाणिया, दुरूहिया आदि।
(च) इनके अतिरिक्त विडक्कम्म, निसम्म, समिच्च, सखाए अणुवीति, लद्ध, लद्ध ण, दिस्सा आदि प्रयोगो मे 'त्वा' के रूप भिन्न-भिन्न तरह के पाये जाते है।
२'तुम्' प्रत्यय के स्थान मे इत्तए या इत्तते प्रायः देखने मे आता है। जैसे—करित्तए, गच्छितए, सभुजित्तए, उवासमित्तते ( विपा० १३), विहरित्तए आदि ।
३-ऋकारान्त धातु के 'त' प्रत्यय के स्थान मे 'ड' होता है, जैसे-कड, मड, अभिहड, वावड, सवुड, वियुड, वित्थड प्रभृति ।