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जैन परम्परा का इतिहास
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वह हमारे आचार्यो की
कि साधु इनके अतिरिक्त उपकरण रख सकता है । प्रश्न व्याकरण में साधु के लिए लगातार १६ उपधि गिनाये है४४ । अन्य सूत्रों की साक्षी से उपधि का सकलन किया जाय तो उनकी सख्या ३० तक पहुँच जाती है । साध्वी के लिए ४ उपधि और स्थवीर के लिए ११ उपधि और अधिक बतलाए गए है ४५ । अब प्रश्न यह होता है कि उपकरणों की इस सख्या से अतिरिक्त उपकरण जो रखे जाते है, वे कैसे ? इसके उत्तर मे कहना होगा कि स्थापना है | सूत्र से विरुद्ध न समझ कर उन्होने वैसी आज्ञा दी है । जैसा कि आचार्य भिक्षु ने ६ कहा है ४ | केवल लिखने के लिए सम्भवत २०-२५ या उससे भी अधिक उपकरणों की जरूरत होती है। सूत्रो में इनके रखने की साफ शब्दों में आज्ञा तो दूर चर्चा तक नही है । इसी आधार पर कइयो ने पुस्तक - पन्नो तथा लेख - सामग्री रखने का विरोध किया । इस पर आचार्य भिक्षु ने कहा कि सूत्रो मे शुद्ध साधुओ के लिए लिखना चला बताया गया है४७ | इसलिए पन्नें तथा लेख सामग्री रखने में कोई दोष नही है । क्योंकि जो लिखेंगे, उन्हें पत्र और लेखनी भी रखने होगे । स्याही भी और स्थायी - पात्र भी ४८ । आचार्य भिक्षु ने साधु को लिखना कल्पता है और जब लिखने का कल्प है तब उसके लिए सामग्री भी रखनी होगी, ऐसा स्थिर विचार प्रस्तुत हो नही किया अपितु प्रमाणों से समर्थित - भी किया है । इसके समर्थन में चार शास्त्रीय प्रमाण दिए है ४९ । इनमें निशीथ की प्रशस्ति गाथा को छोड़ कर शेष तीनो प्रमाण लिखने की प्राचीनता के साधक है - इसमे कोई सन्देह नही । बहुविध अवग्रह वाली मति-सम्पदा से साधुओ के लिखने की पद्धति की स्पष्ट जानकारी मिलती है । निशीथ को प्रशस्ति गाथा का लिखित ( लिहिय ) शब्द महतर विशाख गणि की लिपि का सूचक माना जाय तो यह
भी लिखने का एक पुष्ट
प्रमाण
माना जा सकता है । किन्तु यदि इस लिखित दद को अन्य अर्थ में लिया जाय तो हमें मानना होगा कि मूल पाठ मे लिखने की बात नही मिलती । इसलिए हमे इसे आचार्यो के द्वारा की हुई सयौक्तिक स्थापना ही मानना होगा । पूर्ववर्ती आचार्यों ने शास्त्रो का विच्छेद न हो, इस दृष्टि से आगे चल कर पुस्तक रखने का विधान किया, यह भी उनकी जीत - व्यवहार- परम्परा है५० ।