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जैन परम्परा का इतिहास
लिखा । विक्रम की छठी शताब्दी में सघदास क्षमाश्रमण ने वासुदेव हिन्दी नामक एक कथा अन्य लिखा, इसका दूसरा खण्ड धर्मसेनगणी ने लिखा५५ । इसमे वसुदेव के पर्यटन के साथ-साथ अनेक लोक-कथाओ, चरित्रो, विविध वस्त्रो, उत्सवो और विनोद-साधनो का वर्णन किया है । जर्मन विद्वान् आल्सफोर्ड ने इसे वृहत्कथा के समक्ष माना है५६ ।
विक्रम की सातवी शताब्दी मे जिनभद्रगणी क्षमाश्रमण हुए। विशेषावश्यक भाष्य इनकी प्रसिद्ध कृति है । यह जैनागमो की चर्चाओ का एक महान् कोष है । जीतकल्प, विशेषणवती , वृहत्-संग्रहणी और वृहत्-क्षेत्र-समास भी इनके महत्वपूर्ण ग्रन्थ है। - हरिभद्र सूरि विक्रम की आठवी शती के विद्वान् आचार्य है । "समराइच्च कहा" इनका प्रसिद्ध कथा-ग्रन्थ है। सस्कृत-युग में भी प्राकृत-भाषा में रचना का क्रम चलता रहा है।
मध्य काल में निमित्त, गणित, ज्योतिष, सामुद्रिक शास्त्र, आयुर्वेद, मन्त्रविद्या, स्वप्न-विद्या, शिल्प-शास्त्र, व्याकरण, छन्द, कोष आदि अनेक विषयक ग्रन्थ लिखे गए है५७ । संस्कृत साहित्य
विशिष्ट व्यक्तियो के अनुभव, उनकी संग्रहात्मक निधि, साहित्य और उसकी आधार भाषा-ये तीनो चीजें दुनियां के सामने तत्त्व रखा करती है । सूरज, हवा और आकाश की तरह ये तीनो चीजें सबके लिए समान है । यह एक ऐसी भूमिका है, जहाँ पर साम्प्रदायिक, सामाजिक और जातीय या इसी प्रकार के दूसरे-दूसरे सब भेद मिट जाते है । ___ संस्कृत-साहित्य के समृद्धि के लिए किसने प्रयास किया या किसने न कियायह विचार कोई महत्व नही रखता । वाडमय-सरिता सदा अभेद को भूमि मे बहती है। फिर भी जैन, बौद्ध और वैदिक की त्रिपथ-गामिनी विचार धाराएं है वे त्रिपथगा (गगा) की तरह लम्बे अर्से तक वही है।
प्राचीन वैदिकाचार्यों ने अपने सारभूत अनुभवों को वैदिक संस्कृत में रखा। जैनो ने अर्धमागधी भाषा और बौद्धो ने पाली भाषा के माध्यम से अपने विचार प्रस्तुत किए । इसके बाद मे इन तीनों धर्मों के उत्तरवर्ती आचार्यों ने जो साहित्य