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जैन परम्परा का इतिहास दिगम्बर-परम्परा मे ये चार अनुयोग कुछ रूपान्तर से मिलते है । उनके नाम क्रमशः ये है:
(१) प्रथमानुयोग (२) करणानुयोग (३) चरणादुयोग (४) द्रव्यानुयोग२२।
श्वेताम्बर-मान्यता के अनुसार चार अनुयोगो का विषय क्रमश: इस प्रकार है
(१) आचार (२) चरित, दृष्टान्त, कथा आदि (३) गणित, काल (४) द्रव्य, तत्त्व
दिगम्बर-मान्यता के अनुसार चार अनुयोगो का विषय क्रमशः इस प्रकार है:
(१) महापुरुषों के जीवन-चरित्र (२) लोकलोक विभक्ति, काल, गणित (३) आचार (४) द्रव्य, तत्त्व । दिगम्बर आगमो को लुप्त मानते है, इसीलिए वे प्रथमानुयोग में महापुराण और पुराण, करणानुयोग में त्रिलोक-प्रज्ञप्ति, त्रिलोकसार, चरणानुयोग में मूलाचार और द्रव्यानुयोग मे प्रवचनसार, गोम्मटसार मादि को समाविष्ट करते है। लेखन और प्रतिक्रिया
जैन-साहित्य के अनुसार लिपि का प्रारम्भ प्राग-ऐतिहासिक है । प्रज्ञापना में १८ लिपियों का उल्लेख मिलता है २ । भगवान् ऋषभनाथ ने अपनी पुत्री ब्राह्मी को १८ लिपियां सिखाई-ऐसा उल्लेख विशेषाश्यक भाष्यवृत्ति, त्रिषष्टि शलाका पुरुष चरित्र आदि में मिलता है २४ । जैन सूत्र वर्णित ७२ कलाओ में लेख-कला का पहला स्थान है२५ । भगवान् ऋषभनाथ ने ७२ कलाओ का उपदेश किया तथा असि, मसि और कृषि-न्ये तीन प्रकार के व्यापार चलाए२६ । इनमें आये हुए लेख-फला और मषि शब्द लिखने की परम्परा को कर्म-युग के आरम्भ तक ले जाते है । नन्दी सूत्र में तीन प्रकार का अक्षर-श्रुत बतलाया है। इसमें पहला