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जैन परम्परा का इतिहास
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अधिकार प्राप्त करने की आवश्यकता भी महसूस नही हुई
है । उस समय ऐसे होगी । परन्तु मैं तो आध्यात्मिक अधिकारो की बात कर रहा हूँ ।
पुरुपो को जितने आध्यात्मिक अधिकार मिलते है, उतने ही स्त्रियो को भी अधिकार हो सकते है । इन आध्यात्मिक अधिकारो मे महावीर ने कोई भेद-बुद्धि नही रखो, जिसके परिणाम स्वरूप उनके शिष्यो मे जितने श्रमण थे, उनसे ज्यादा श्रमणियाँ थी । वह प्रया आज तक जैन धर्म मे चली आई है । आज भी जैन सन्यासिनी होती हे । जैन धर्म मे यह नियम है कि सन्यासी अकेले नही घूम सकते है । दो से कम नहीं, ऐसा सन्यासी और सन्यासिनियो के लिए नियम है । तदनुसार दो-दो वहने हिन्दुस्तान में घूमती हुई देखते है । विहार, मारवाड, गुजरात, कोल्हापुर, कर्नाटक और तमिलनाड की तरफ इस तरह घूमती हुई देखने को मिलती है, यह एक बहुत बडी विशेषता माननी चाहिए ।
महावीर के पीछे ४० ही साल के बाद गौतम बुद्ध हुए, जिन्होने स्त्रियो को सन्यास देना उचित नही माना । स्त्रियो को सन्यास देने मे धर्म- मर्यादा नही रहेगी, ऐसा अन्दाजा उनको था । लेकिन एक दिन उनका शिष्य आनन्द एक बहन को ले आया और बुद्ध भगवान् के सामने उसे उपस्थित किया और वुद्ध भगवान् से कहा कि "यह वहन आपके उपदेश के लिए सर्वथा पात्र है, ऐसा मैंने देख लिया है | आपका उपदेश अर्थात् सन्यास का उपदेश इसे मिलना चाहिए ।" तो वृद्ध भगवान् ने उसे दीक्षा दी । और बोले कि - " हे आनन्द, तेरे आग्रह और प्रेम के लिए यह काम में कर रहा हूँ । लेकिन इससे अपने सम्प्रदाय के लिए एक वडा खतरा मैंने उठा लिया है ।" ऐसा वाक्य बुद्ध भगवान् ने कहा और वैसा परिणाम वाद मे आया भी । वौद्धो के इतिहास मे बुद्ध को जिस खतरे का अन्देशा था, वह पाया जाता है । यद्यपि बोद्ध धर्म का इतिहास पराक्रमगोली है । उसमे दोप होते हुए भी वह देश के लिए अभिमान रखने के लायक है । लेकिन जो डर बुद्ध को था वह महावीर को नही था, यह देखकर आश्चर्य होता है । महावीर निडर दीख पड़ते हे । इसका मेरे मन पर बहुत असर है । इसीलिए मुझे महावीर की तरफ विशेष आकर्षण है । बुद्ध की महिमा भी बहुत है । सारी दुनिया