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जैन परम्परा का इतिहास
और मिथ्या क्रिया करने के द्वारा सम्यक् क्रिया करता है - इस प्रकार एक जीव एक समय मे दो क्रियाएँ करता है । यह कैसे है भगवन्
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भगवान् गौतम | एक जीव एक समय मे दो क्रियाए करता है यह जो कहा जाता है, वह सच नही है - मैं इस प्रकार कहता हूँ, प्रज्ञापना और प्ररूपणा करता हूँ । एक जीव एक समय में एक ही क्रिया करता है - सम्यक् या मिथ्या । जिस समय सम्यक क्रिया करता है, उस समय मिथ्या क्रिया नही करता और जिस समय मिथ्या क्रिया करता है, उस समय सम्यक् क्रिया नही करता । सम्यक् क्रिया करने के द्वारा मिथ्या किना नही करता और मिथ्या क्रिया करने के द्वारा सम्यक् क्रिया नहीं करता है । इस प्रकार एक जीव एक समय मे एक ही क्रिया करता है - सम्यक् या मिथ्या" " । "
अन्य तीर्थिक लोग "एक साथ धर्म और अधर्म दोनो क्रियाएँ होती है ऐसा मानते थे । उनका भगवान् महावीर ने इस सूत्र मे प्रतिवाद किया और बताया - " सम्यक् और असम्यक् - शुभ अव्यवनाय वाली और अशुभ अध्यवसाथ वाली ये दोनो क्रियाए एक साथ नही हो सकती । आत्मा क्रिया करने मे सर्वात्मना प्रवृत्त होती हे । इसलिए क्रिया का अध्यवसाय एक साथ द्विरूप नहीं हो सकता । जिस समय निर्जरा होती है, उस समय आसव भी विद्यमान रहता है । पुण्य वव होता है, उस समय पाप भी बचता है । किन्तु वे दोनो प्रवृत्तियां स्वतन्त्र है, इसलिए वह मिश्र नही कहलाता । जिससे कर्म लगता है, उसीसे कर्म नहीं टूटता तथा जिससे पुण्य का वध होता है, उसीसे पाप का बंध नही होता । एक ही प्रवृत्ति से धर्म और अधर्म दोनो हो, पुण्य-पाप दोनो वधे, उसका नाम मिश्र है । धर्म मिश्रनही होता ।"
ये विचार आदि काल में बहुत ही अपरिचित से लगे किन्तु अव इनकी गहराई से लोगो का निकट परिचय हुआ है ।
तेरापथ के आठ आचार्य हो चुके है । वर्तमान नेता आचार्य श्री तुलसी है । अणुव्रत आन्दोलन जो अहिंसा, मंत्री, धर्म-समन्वय और धर्म के सम्प्रदायातीत रूप का ज्वलत प्रतीक है, आचार्य श्री के विचार मन्थन का नवनीत है ।
आन्दोलन - प्रवर्तक के व्यक्तित्व पर जैन धर्म का समन्वयवाद और असाम्प्र दायिक धार्मिकता की अमिट छाप है ।