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जैन परम्परा का इतिहास
[६३ १२-प्राणायुप्रवाद इन्द्रिय, श्वासोच्छवास, आयुष्य एक करोड़
और प्राण का निरूपण छपन लाख १३- क्रियाविशाल शुभाशुभ क्रियाओ का निरूपण नौ करोड १४–लोकविन्दुसार __ लोक विन्दुमार लधि का स्वरूप
___ और विस्तार साढे वारह करोड़ उत्पाद पूर्व मे दस वस्तु और चार चूलिकावस्तु है। अग्नायणीय पूर्व में चौदह वस्तु और वारह चूलिकावस्तु है । वीर्यप्रवाद पूर्व में आठ वस्तु और आठ चूलिकावस्तु है । अस्ति-नास्ति-प्रवाद पूर्व में अठारह वस्तु और दस चूलिकावस्तु है । ज्ञान-प्रवाद पूर्व मे वारह वस्तु है । सत्य प्रवाद पूर्व मे दो वस्तु है । आत्मप्रवाद पूर्व मे सोलह वस्तु है । कर्म-प्रवाद पूर्व मे तीस वस्तु है । प्रत्याख्यान पूर्व में बीस । विद्यानुप्रवाद पूर्व मे पन्द्रह । अवन्व्य पूर्व मे बारह । प्राणायु पूर्व मे तेरह । क्रियाविशाल पूर्व मे तीन । लोक विन्दुसार पूर्व मे पच्चीस । चौथे से आगे के पूर्वो मे चूलिकावस्तु नही है । ___इनकी भाषा सस्कृत मानी जाती है। इनका विषय गहन और भापा सहज सुवोध नही थी। इसलिए अल्पमति लोगो के लिए द्वादशांगी रची गई। कहा भी है -
'वालस्त्रीमन्दमूर्खाणां, नृणां चारित्रकाडिक्षणाम् ।
अनुग्रहार्थ तत्त्वजे , सिद्धातपः प्राकृते कृतः ॥ आचारांग का स्थान पहला है। वह योजना की दृप्टि से है। रचना की दृष्टि से पूर्व का स्थान पहला है । आगमों की भाषा
जैन आगमो की भाषा अर्ध-मागधी है। आगम-साहित्य के अनुसार तीर्थकर अर्ध-मागधी में उपदेश देते है । इसे उस समय की दिव्य भापा और इसका प्रयोग करने वाले को भापार्य कहा है । यह प्राकृत का ही एक रूप है । यह मगध के एक भाग मे बोली जाती है, इसलिए अर्ध-मागधी कहलाती है । इसमे मागधी और दूसरी भाषाओ-अठारह देशी भाषाओ के लक्षण मिश्रित है। इसलिए यह अर्थ-मागधी कहलाती है।' । भगवान् महावीर के शिष्य मगध, मिथिला, कौशल आदि अनेक प्रदेश, वर्ग और जाति के थे।