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जैन परम्परा का इतिहास
और वैसी ही साधना-एक तथ्य है। इसका अपवाद कोई नहीं होता। भगवान महावीर भी इसके अपवाद नही थे। जन्म और परिवार
दुषमा सुषमा ( चतुर्थअर ) पूरा होने में ७४ वर्ष ११ महीने ७॥ दिन बाकी थे । ग्रीष्म ऋतु थी। चैत्र का महीना था। शुक्ला त्रयोदशी की मध्यरात्रि की बेला थी । उस समय भगवान महावीर का जन्म हुआ था। यह ई० पूर्व ५६६ की बात है । भगवान् की माता त्रिशला क्षत्रियाणी और पिता सिद्धार्थ थे। वे भगवान पार्श्व की परम्परा के श्रमणोपासक थे । भगवान् की जन्म-भूमि क्षत्रिय कुण्डनाम नगर था । वैशाली, वाणिज्यग्नाम, ब्राह्मण-कुण्डनगर, क्षत्रिय-कुण्डग्राम जन्मभूमि के बारे मे तीन मान्यताए है" ।
१-श्वेताम्बर मान्यता "प्राचीन मान्यतानुसार लखीसराय स्टेशन से नैऋत्य दक्षिण में १८ मील, सिकन्दरा से दक्षिण मे २ मील, नवादा से पूर्व में ३८ मील औत जमुई से पश्चिम में १४ मील दूर नदी के किनारे लछवाड़ गाँव है, जो लिच्छवियों की भूमि थी। यहाँ जैन पाठशाला है और भगवान महावीर स्वामी का मन्दिर भी । लछवाड - से दक्षिण में तीन मील पर नदी किनारे कुडेघाट है। वहाँ भगवान महावीर के दीक्षा-स्थान पर दो जैन मन्दिर है और भाया तलहटी भी है। वहाँ से एक देवड़ा की, दो किंदुआ की, एक सकस किया की और तीन चिकना की-ऐसी कुल सात पहाडी घाटियाँ है, जिन्हे पार करने पर ३ मील दूर 'जन्म-स्थान' नामक भूमि है । वहां भगवान महावीर स्वामी का मन्दिर है । चिकना के चढाव से पूर्व मे ६ मील जाने पर लोधापानी नामक स्थान आता है। वहाँ शीतल जल का झरना है, पुराना पक्का कुओं है, पुराने खडहर है और टीला भी, जिसमे से पुरानी गजिया ईटें मिलती है । वास्तव में यही भगवान् महावीर का जन्म स्थान' है। जिसका दूसरा नाम 'क्षत्रियकुड' है। किसी भी कारणवस क्यो न हो पर आज वहाँ पर कोई मन्दिर नही है बल्कि जहाँ मन्दिर है, वहाँ २५० वर्ष पहले भी वह था और उसके पूर्व में ३ कोस पर क्षक्षियकुड-स्थान माना जाता
था- यह उस समय की तीर्थ-भूमियो के उल्लेख से बराबर जान सकते है।