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जैन परम्परा का इतिहास
[२५ से वरावर जान सकते है। अर्थात् लोधापानी का स्थान ही असली क्षत्रियकुड की भूमि है।"
२-दिगम्बर-मान्यता कई बातो मे दिगम्बर-सघ, श्वेताम्बर-सघ से विलकुल अलग मत रखता है । वैसे ही कई एक तीर्थ-भूमियो के बारे में भी अपना अलग विचार रखता है। दिगम्बर सम्प्रदाय भगवान् महावीर का जन्म-स्थान कुंडपुर मे मानता है पर उसका अर्थ 'कुंडलपुर' ही करते है। राजगृही व नालन्दा के पास आया कुंडलपुर ही उनकी वास्तविक जन्म-भूमि है ।
श्वेताम्बर सघ इस कुंडलपुर को 'बडगाँव' के नाम से पहचानता है, जिसके दूसरे नाम गुब्बरगाँव (गुरुवर नाम ) तथा कुंडलपुर है। सवत् १६६४ मे यहाँ पर कुल १६ जिनालय थे, किन्तु आज केवल एक श्वेताम्वर जिनालय, धर्मगाला और उसके वीच का श्री गौतम स्वामी का पादुका-मन्दिर है।
दिगम्बर मान्यतानुसार नालन्दा स्टेशन से पश्चिम मे २ मील पर आया कुंडलपुर ही भगवान् महावीर का जन्मस्थान क्षत्रियकुण्ड है ।
३-पाश्चात्य विद्वानो की मान्यता "पाश्चात्य सगोवक विद्वद्-वर्ग क्षत्रियकुण्ड के विषय में तीसरा ही मत रखता है। उनका कहना है कि वैशाली नगरी, जिसका वर्तमान मे वेसाउपट्टी नाम है अथवा उसका उपनगर ही वास्तविक क्षत्रियकुण्ड है।
सर्व प्रथम उपरोक्त मान्यता को डा० हर्मन जैकोबी तथा डा० ए० एफ० आर० होर्नले आदि ने करार दिया तगा पुरातत्त्ववेत्ता पडित श्री कल्याणविजयजी महाराज एव इतिहास-तत्त्व-महोदधि आचार्य श्री विजयेन्द्र सूरिजी ने एक स्वर से अनुमोदन किया। फलत यह मत सशोधित रूप मे अधिक विश्वसनीय बनता जा रहा है।"
कोल्लाग-सन्निवेश- उसके पार्श्ववर्ती नगर और गांव थे।
त्रिशला देशाली गणराज्य के प्रमुख चेटक की वहन थी। सिद्धार्थ क्षत्रियकुण्ड ग्राम के अधिपति थे।
भगवान के बड़े भाई का नाम नन्दिवर्धन था। उनका विवाह चेटक की