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जैन परम्परा का इतिहास
पुत्री ज्येष्ठा के साथ हुआ था । भगवान् के काका का नाम सुपार्श्व और बडी बहन का नाम सुदर्शना था ।
नाम और गोत्र
भगवान् जब त्रिशला के गर्भ में आए, तव से सम्पदाएँ बढ़ी, इसलिए माता-पिता ने उनका नाम वर्धमान रखा। वर्धमान ज्ञात नामक क्षत्रियकुल मे उत्पन्न हुए, इसलिए कुल के आधार पर उनका नाम ज्ञात-पुत्र हुआ ।
साधना के दीर्घकाल में उन्होने अनेक कष्टो का वीर-वृत्ति से सामना किया। अपने लक्ष्य से कभी भी विचलित नही हुए। इसलिए उनका नाम महावीर हुआ १० । यही नाम सबसे अधिक प्रचलित है।
सिद्धार्थ कश्यप-गोत्रीय क्षत्रिय थे। १ । पिता का गोत्र ही पुत्र का गोत्रहोता है । इसलिए महावीर कश्यप-गोत्रीय कहलाए ।
यौवन और विवाह
बाल-क्रीड़ा के बाद अध्ययन का रामय आता है। तीर्थकर गर्भ-काल से ही अवधि-ज्ञानी होते है। महावीर भी अवधि-ज्ञानी थे१२ | वे पढने के लिए गए। अध्यापक जो पढाना चाहता था, वह उन्हे ज्ञात था। आखिर अध्यापक ने कहा- आप स्वय सिद्ध है। आपको पढ़ने की आवश्यकता नहीं।
यौवन आया। महावीर का विवाह हुआ। वे सहज विरत थे। विवाह करने की उनकी इच्छा नही थी। पर माता-पिता के आग्रह से उन्होने विवाह किया।
दिगम्बर-परम्परा के अनुसार महावीर अविवाहित ही रहे। श्वेताम्बरसाहित्य के अनुसार उनका विवाह क्षत्रिय कन्या यशोदा के साथ हुआ१४ । उनके प्रियदर्शना नाम की एक कन्या हुई१५ । उसका विवाह सुदर्शना के पुत्र ( अपने भानजे ) जमालि के साथ किया'६।
उनके एक शेषवती ( दूसरा नाम यशस्वती) नाम की दौहित्री-धेवती हुई | वे गृहस्थी में रहे पर उनकी वृत्तियाँ अनासक्त पी।