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जैन परम्परा का इतिहास
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विमलवाहन के समय मे 'हाकार' नीति का प्रयोग हुआ । उस समय के मनुष्य स्वय अनुशासित और लज्जाशील थे। "हा ! तूने यह क्या किया," ऐसा कहना गुरुतर दण्ड था।
दूसरे कुलकर चक्षुष्मान के समय भी यही नीति चली।
तीसरे और चौथे-यशस्वी और अभिचन्द्र कुलकर के समय मे छोटे अपराध के लिए 'हाकार' और बड़े अपराध के लिए 'माकार' ( मत करो ) नीति का प्रयोग किया गया। ___ पांचवें, छठे और सातवें-प्रश्रेणि, मरुदेव और नाभि कुलकर के समय मे 'धिक्कार' नीति और चली । छोटे अपराध के लिए धिक्कार' नीति का प्रयोग किया गया ।
अभी नाभि का नेतृत्व चल ही रहा था। युगलो को जो कल्पवृक्षो से प्रकृति-मिद्ध भोजन मिलता था, वह अपर्याप्त हो गया। जो युगल शान्त और प्रसन्न थे, उनमे क्रोध का उदय होने लगा। आपस मे लडने-झगडने लगे। 'धिक्कार' नीति का उल्लघन होने लगा। जिन युगलो ने क्रोध, लडाई जैसी स्थितियां न कभी देखी और न कभी सुनी- वे इन स्थितियो से धबडा गए । वे मिले और ऋपभकुमार के पास पहुचे और मर्यादा के उल्लघन से उत्पन्न स्थिति का निवेदन किया । ऋषभ ने कहा--"इस स्थिति पर नियन्त्रण पाने के लिए राजा की आवश्यकता है।"
"राजा कौन होता है ?"---युगलो ने पूछा।
ऋषभ ने राजा का कार्य समझाया। शक्ति के केन्द्रीकरण की कल्पना उन्हें दी । युगलो ने कहा-'हम मे आप सर्वाधिक समर्थ है। आप ही हमारे राजा वनें।"
ऋपभकुमार वोले-"आप मेरे पिता नाभि के पास जाइये, उनसे राजा की याचना कीजिये । वे आपको राजा देंगे।" वे चले, नाभि को सारी स्थिति से परिचित कराया। नाभि ने ऋषभ को उनका राजा घोपित किया। वे प्रसन्न हो लौट गए।
ऋपभ का राज्याभिषेक हुआ। उन्होने राज्य-सचालन के लिए नगर