Book Title: Ganitsara Sangrah
Author(s): Mahaviracharya, A N Upadhye, Hiralal Jain, L C Jain
Publisher: Jain Sanskriti Samrakshak Sangh
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प्रस्तावना
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यूनानी विज्ञान का उच्चतम विकास होता है, पर अंकगणित और ज्योतिष ( astronomy ) वही आदिकालीन रहते हैं।
मिस्र में प्रचलित अंकगणित से यूनानियों ने क्या सीखा ? इस प्रश्न पर वाएडेन का मत है कि यूनानियों ने मिस्र की गुणन विधि तथा भिन्नों का कलन सीखा होगा। इस प्रकार के कलन को उच्च बीजगणित के विकसित करने का आधार नहीं बनाया जा सकता है। यूनानियों ने ज्यामिति को भी स्वतंत्र रूप से विकसित किया। मिस्र की ज्यामिति के कुछ फल अवश्य ही प्रशंसनीय रहे हों, पर यूनानियों के लिए वह केवल प्रयुक्त अंकगणित ही थो । रोमन युग में भी, जब कि फलित ज्योतिष का विकास हुआ, मिस्र की गणित ज्योतिष यूनान और बेबिलन की गणित ज्योतिष से बहुत पीछे रही ।
यहां मिस्र और भारत की अभिलेखबद्ध सामग्री पर दृष्टिपात करना कहां तक उपयोगी सिद्ध होगा, नहीं कहा जा सकता:
(१) न केवल मास्को पेपायरस में, वरन् रिंड पेपायरस ( सम्भवतः ईसा से १७०० वर्ष पूर्व ) में भी परिधि और व्यास के अनुपात्त (T) का मान (३)२ अथवा ३.१६०५......माना गया है।
ठीक यही मान नेमिचंद्राचार्य ने इस प्रकार उल्लिखित किया है, “यदि किसी वृत्त की त्रिज्या त्र और उसके समाई किसी वर्ग की भुजा भ हो,
तो त्र= भ होता है" 7 का एक दूसरा मान / १० है, जो दशमलव के दो अंकों तक इसी रूप में प्राप्त होता है। इसे यति वृषभ ने तिलोय पण्णत्ती में दृष्टिवाद से अवतरित उल्लिखित किया है।
(२) समलम्ब चतुर्भुज के क्षेत्रफल निकालने के सूत्रों का उपयोग तिलोय पण्णत्ती की गाथाओं. १-१६५, १८१ आदि में हुआ है। उपरोक्त सूत्रों से अवतरित सूत्र का उपयोग मिस्त्र के यंत्रियों ने चतुर्भुज का स्थूल क्षेत्रफल निकालने के लिए किया। यह सूत्र एडफू के सूर्य मंदिर में ( सम्भवतः ईसा से १०० वर्ष पूर्व का) प्राप्त हुआ है ।x
(३) मिस्र में 7 का एक दूसरा मान बीजों की राशियों अथवा उनसे भरी जाने वाली वरिमाओं के माप से परिगणित परिधि और व्यास का अनुपात (ratio) के रूप में ३२ प्राप्त होता है। + व्यास को यदि इकाई लिया जाय तो वीरसेनाचार्य द्वारा उल्लिखित सूत्र “व्यासं षोडश गुणितं......" से 7 का मान प्राप्त होता है।
(४) रजु (Rope) जिनागम के विविध विषयों का निरूपण करता है। यह आयाम की एक विश्व इकाई है जिसका सम्बन्ध सूच्यंगुल, द्वीप समुद्रों की संख्या, आदि से स्थापित किया है। केन्टर के
*J.L. Coolidge: A History of Geometrical Methods, p. 11, (1940). +त्रिलोक सार, गाथा 101 * विभूति भूषण दत्त, जैन सिद्धान्त भास्कर, भाग २, किरण २, पृ० ३४ । @ति. प. ४-५०, ५७ । ४ षट्खंडागम, पुस्तक , गाथा १, ३ आदि । +T. Health, Greek Mathematics, vol. I., p. 125, (1921).
षट्खंडागम, पु. ४, पृ. ४०, गाथा १४ । लक्ष्मीचंद्र जैन, तिलोय पण्णत्ती का गणित, शोलापुर, पृ. ९९-१०१, ( १९५९)।