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[१०] सुख को प्राप्त करते हैं । हम यह निस्संकोच कह सकते हैं कि जो इस ग्रन्थका भक्ति से अध्ययन करेंगे वे जैन सिद्धांतके मर्मज्ञ . अनेक विषयों के ज्ञाता विद्वान् बन सकले हैं ।
अनुवादक । . इस ग्रन्थका अनुवाद धर्मरत्न पं. लालारामजी शास्त्रीने किया है : साहित्य संसार में आपका परिचय देने की
आवश्यकता नहीं है। आपने अनेक ग्रन्थोंका अनुवाद व निर्माण किया है। साहित्यक्षेत्रमें आपके द्वारा जो उपकार हुआ है उस के लिये जैन समाज आपका चिरकृतज्ञ रहेगा।
उपसंहार । सचमुच में पूज्यपाद महर्षि कुंथुसागर महाराजके इस पावन उपकार के लिये पाठकोंकी ओरसे उनके चरणोंमें हम श्रद्धांजलिके. 'सिवाय और क्या अर्पण कर सकते हैं ? इस ग्रन्थके प्रकाशन कार्यमें श्री धर्मवीर, गुरुभक्त सेठ रावजी सखाराम दोशीने अनेक प्रकारसे सहयोग व प्रूफ संशोधन के कार्यमें हमारे मित्र पं. जिन- . दासजी शास्त्रीने भी सहायता दी है, इसके लिये उन दोनोंका हम कृतज्ञ हैं। बोधामृतसार आचंद्रार्कस्थायी रहे, यह श्री परम पावन देवाधिदेव के चरणमें बिनम्र विनती है ।
सोलापूर ) आश्विन शुद्र ५
गुरुचरणसरोजचंचरीक, वर्धमान पार्श्वनाथ शास्त्री