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वर्णन शैली। महर्षिने इस ग्रन्थके निर्माण करनेमें इतने सरल शब्दोंकी योजना की है कि प्रवेशिकामें पढनेवाले छात्र भी उसे अच्छीतरह समझसकेंग । ग्रंथके सरल होनेमें उसका उपयोग व प्रचार भी अधिक रूपसे होता है। इसमें कोई संदेह नहीं कि समाजके सर्व श्रेणा सज्जन जिनके हृदयमें गुरुवोंके प्रति आस्था है इसका स्वाध्याय कर पुण्य संचय करेंगे । हमारे ख्यालसे सरल रचनामें ग्रन्थकाने यही उद्देश रखा होगा। इतनी मृदुरचना होनेपर भी हिंदी अनुवाद दिया गया है यह सोनेमें सुगंध होगया है।
ग्रंथ विषय । . ग्रंथका विषय ग्रंथके नामसे ही स्पष्ट है । इस ग्रंथका नाम
बोधामृतसार महर्षिने बहुत ही विचार पूर्वक रक्खा है। इसके अंदर वर्णित विषय कितने साल, आवश्यक, उपयुक्त व बोधप्रद है इसे अलग वर्णन करनेकी जरूरत नहीं। यह तो पाठक इसके पठन करते समय स्वयं ही अनुभव करेंगे। परंतु हम इस संबंधमें महार्षिके ही वाक्यमें इतना ही कह देना पर्याप्त समझते हैं किग्रंथ ह्यमुं वांछितदं सदैव, स्मरंति गायंति पठंति भक्त्या । श्रृण्वंति वांच्छंति नमंति यांति, त एव भव्या भुविसारसौख्यं - लभंते, अर्थात् जो भव्य कामितफल देनेवाले इस ग्रंथको सदा स्मरण करते हैं गाते हैं पढते हैं, भक्तिसे सुनते हैं सुनने की इच्छा करते हैं, नमस्कार करते हैं वे लोक में उत्तम