Book Title: Bhagwati Sutra Part 02
Author(s): Kanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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बारहवां शतक
पहला उद्देश
संग्रहणी गाथा
बारहवें शतक के दस उद्देशक हैं- १. शंख २. जयंति ३. पृथ्वी ४. पुद्गल ५. अतिपात ६. राहु ७. लोक ८. नाग ९. देव १०. आत्मा ।
शंख- पुष्कली पद
१. उस काल और उस समय में श्रावस्ती नाम की नगरी थी - वर्णक । कोष्ठक चैत्य-वर्णक । उस श्रावस्ती नगरी में शंख आदि अनेक श्रमणोपासक रहते थे । वे संपन्न यावत् बहुजन के द्वारा अपरिभवनीय, जीव- अजीव को जानने वाले यावत् यथा - परिग्रहीत तपःकर्म के द्वारा आत्मा को भावित करते हुए रह रहे थे। उस श्रमणोपासक शंख की उत्पला नाम की भार्या थी - सकुमाल हाथ पैर वाली यावत् सुरुपा । वह श्रमणोपासिका जीव अजीव को जानने वाली यावत् यथा-परिगृहीत तपःकर्म के द्वारा आत्मा को भावित करती हुई रह रही थी । श्रावस्ती नगरी में पुष्कली नाम का श्रमणोपासक रहता था वह संपन्न, जीव- अजीव को जानने वाला यावत् यथा-परिग्रहीत तपःकर्म के द्वारा आत्मा को भावित करता हुआ रह रहा था ।
२. उस काल और उस समय में भगवान् महावीर आए, परिषद यावत् पर्युपासना की । वे श्रमणोपासक इस कथा को सुनकर हष्ट-तुष्ट चित्त वाले हो गए। आलभिका की भांति वक्तव्यता यावत् पर्युपासना की । श्रमण भगवान महावीर ने उन श्रमणोपासकों को उस विशालतम परिषद् में धर्म कहा, यावत् परिषद लौट गई।
३. वे श्रमणोपासक श्रमण भगवान् महावीर के पास धर्म सुनकर, अवधारण कर हृष्ट-तुष्ट हो गए। उन्होंने श्रमण भगवान् महावीर को वंदन - नमस्कार किया, वंदन नमस्कार कर प्रश्न पूछे । पूछकर अर्थ को ग्रहण किया, ग्रहण कर, उठकर खड़े हुए। खड़े होकर श्रमण भगवान् महावीर के पास से, कोष्ठक चैत्य से प्रतिनिष्क्रमण किया । प्रतिनिष्क्रमण कर जहां श्रावस्ती नगरी थी, वहां जाने के लिए चिंतन किया ।
४. वह श्रमणोपासक शंख उन श्रमणोपासकों से इस प्रकार बोला- देवानुप्रिय ! तुम विपुल अशन, पान, खाद्य और स्वाद्य को तैयार करवाओ। हम उस विपुल अशन, पान, खाद्य और स्वाद्य को स्वाद लेते हुए, विशिष्ट स्वाद लेते हुए, परस्पर एक दूसरे को खिलाते हुए, भोजन करते हुए पाक्षिक पौषध की प्रतिजागरणा करते हुए विहरण करेंगे।
५. उन श्रमणोपासकों ने श्रमणोपासक शंख के इस अर्थ को विनयपूर्वक स्वीकार किया ।
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