Book Title: Bhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 01
Author(s): Gyansundarvijay
Publisher: Ratnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
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। ३५ ] करे कौन ? ऐसी स्थिति होने से ही जैन धर्म के विषय में झूठे गपोड़े उड़ने लगे। कोई कहता है जैनधर्म नास्तिक है, कोई कहता है बौद्धधर्म का अनुकरण है, कोई कहता है जब शंकराचार्य ने बौद्धों का पराभव किया तब बहुत से बौद्ध पुनः ब्राह्मण धर्म में आगये । परन्तु उस समय जो थोड़े बहुत बौद्ध धर्म को ही पकड़े रहे उन्हीं के वंशज यह जैन हैं, कोई कहता है कि जैनधर्म बौद्धधर्म का शेष भाग तो नहीं किन्तु हिन्दू धर्म का ही एक पंथ है। और कोई कहते हैं कि नग्न देव को पूजने वाले जैनी लोग ये मूल में आर्य ही नहीं हैं किन्तु अनार्यों में से कोई हैं । अपने हिन्दुस्तान में ही श्राज चौबीस सौ वर्ष पूर्व से पडौस में रहने वाले धर्म के विषय में अब इतनी अज्ञानता है तब हजारों कोस से परिचय पानेवाले व उससे मनोऽनुकूल अनुमान गढ़नेवाले पाश्चिमात्यों की अज्ञानता पर तो हँसना ही क्या है !
(१२) ऋषभदेव जैनधर्म के संस्थापक थे यह सिद्धान्त अपनो भागवत से भी सिद्ध होता है। पार्श्वनाथ जैनधर्म के संस्थापक थे ऐसी कथा जो प्रसिद्ध है वह सर्वथा भूल है। ऐसे ही वर्द्धमान अर्थात् महावीर भी जैनधर्म के संस्थापक नहीं हैं । वे २४ तीर्थंकरों में से एक प्रचारक थे।
(१३) जैनधर्म में अहिंसा तत्व अत्यन्त श्रेष्ठ माना गया है। बौद्ध धर्म व अपने ब्राह्मण धर्म में भी यह तत्व है तथापि जैनियों ने इसे जिस सीमा तक पहुँचा दिया है वहां तक अद्यापि कोई नहीं गया है।
(१४) जैन शास्त्रों में जो यति धर्म कहा गया है वह अत्यन्त उत्कृष्ट है इस में कुछ भी शंका नहीं।
(१५) जैनियों में स्त्रियों को भी यति दीक्षा लेकर परोपकारी कृत्यों में जन्म व्यतीत करने की आज्ञा है । यह सर्वोत्कृष्ट है । हिन्दु समाज को इस विषय में जैनियों का अनुकरण अवश्य करना चाहिये ।।
(१६) ईश्वर सर्वज्ञ, नित्य और मंगल स्वरूप है, यह जैनियों को मान्य है परन्तु वह हमारी पूजन व स्तुति से प्रसन्न होकर हम पर विशेष कृपा करेगा-इत्यादि, ऐसा नहीं है । ईश्वर सृष्टि का निर्माता, शास्ता या संहार का न होकर अत्यन्त पूर्ण अवस्था को प्राप्त हुआ आत्मा ही है ऐसा जैनी मानते हैं। अतएव वह ईश्वर का अस्तित्व नहीं मानते ऐसा नहीं है। किन्तु ईश्वर की कृति सम्बन्धि विषय में उनकी और हमारी समझ में कुछ भेद है। इस कारण जैनी नास्तिक हैं ऐसा निर्बल व्यर्थ अपवाद उन विचारों पर लगाया गया है।
अतः यदि उन्हें नास्तिक कहोगे तो. न कर्तृत्व न कर्माणि लोकस्य सृजति प्रभुः । न कर्म फल संयोगं स्वाभावस्तु प्रवर्तते ॥ नादत्ते कस्य चित्पापनं कस्य सुकृत्यं विमुः। अज्ञानो नावृतं ज्ञानं तेन मुह्यन्ति जन्तवः ।। ऐसा कहनेवाले श्री कृष्णजी की भी नास्तिकों में गणना करनी पड़ेगी।
आस्तिक व नास्तिक यह शब्द ईश्वर के अस्तित्व सम्बन्ध में व कर्तृत्व सम्बन्ध में न जोड़ कर पाणीनीय ऋषि के सूत्रानुसारः
परलोकोऽस्तीति मतिर्यस्यास्तीति आस्तिकः । परलोको नास्तीति मतिर्यस्यास्तीति नास्तिकः ।।
श्रद्धा करें तो जैनियों पर नास्तिकत्व का आरोप नहीं आ सकता। कारण जैनी परलोक का अस्तित्त्व माननेवाले हैं।
(१७) मूर्ति का पूजन श्रावक अर्थात् गृहस्थाश्रमी करते हैं, मुनि नहीं करते । श्रावकों की पूजन विधि प्रायः हम ही लोगों सरीखी है।
(१८) हमारे हाथ से जीव हिंसा न होने पावे इसके लिये जैनी जितने डरते हैं उतने बौद्ध नहीं रहे। बौद्धधर्मी विदेशों में मांसाहार अधिकता के साथ जारी है । "आप स्वतः हिंसा न करके दूसरे के ..org