Book Title: Bhagwan Mahavir Ki Acharya Parampara
Author(s): Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publisher: Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust
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स्वप्न देखनेके बाद अपने मुँहमें प्रवेश करते हुए एक हाथीको देखा। उसी समय उस इन्द्रने अच्युत स्वर्गके पुष्पोत्तर विमानको छोड़कर रानी त्रिशला माँके गर्भमें प्रवेश किया। प्रातः होते ही रानीने स्नान कर पतिदेव महाराज सिद्धार्थसे स्वप्नोंका फल पूछा। उन्होंने अवधिज्ञानसे विचार कर कहा-हे प्रिये, तुम्हारे गर्भसे नव माह बाद तीर्थंकर पुत्रका जन्म होगा। वह सारे संसारका कल्याण करेगा-लोगोंको आत्महितके मार्ग पर लगायेगा। पतिके वचन सुन त्रिशला हर्षके मारे फूली न समाती थी। उसी समय चारों निकायके देवोंने आकर भावी तीर्थंकर महावीरके गर्भावतरणका उत्सव किया तथा उनके माता और पिताका उचित सत्कार किया।
गर्भकालके नौ माह पूर्ण होने पर चैत्र शुक्ला त्रयोदशीके दिन उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्रमें प्रातः समय त्रिशलाके गर्भसे भगवान वर्द्धमानका जन्म हुआ। उस समय अनेक शुभ शकुन हुए थे। उनकी उत्पत्तिसे देव, दानव, मृग और मानव ही नहीं वरन् नारकी तकको हर्ष हुआ था। चारों निकायके देवोंने आकर जन्मोत्सव मनाया था। उस दिन इन्द्रने बालक वर्द्धमानको मेरु पर्वत पर ले जाकर अति भक्तिवश जन्माभिषेक किया व ताण्डव नृत्यादि व आनंद नाटकादि किये। उस समय कुण्डलपुर अपनी सजावटसे स्वर्गको भी पराजित कर रहा था। देवराजने उस बालकका नाम 'वर्द्धमान' रक्खा था। जन्मोत्सवकी विधि समाप्त कर देव लोग अपने-अपने स्थान पर चले गये। राज-परिवारमें बालक वर्द्धमानका बहुत प्यारसे लालन-पालन होने लगा।
एक बार संजय और विजय नामके दो चारणमुनियोंको किसी पदार्थमें सन्देह उत्पन्न हुआ था, परन्तु भगवानके जन्मके
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