________________
टूटे तो अनंत समाधिसुख प्रकट होते हैं और अटकण को नहीं उखाड़ेंगे तो, वह तो ज्ञान को भी और ज्ञानी से भी आपको उखाड़कर अलग कर देगी।
आप पर जिसकी छाया पड़े उसका रोग आपमें आए बगैर रहेगा ही नहीं। सामनेवाले के चाहे जितने सुंदर गुण दिखें, परंतु अंत में तो वे प्राकृतगुण ही हैं न? प्राकृत गुण विकृत हुए बगैर नहीं रहेंगे? सुंदर हाफूज़ आम हो, परंतु वह सड़कर दुर्गंध देगा न?
जहाँ-जहाँ विषयसंबंधी आकर्षण खड़ा हो, उसका तुरंत ही प्रतिक्रमण होना चाहिए, और उसके शुद्धात्मा के पास माँग करना कि मुझे इस अब्रह्मचर्य के विषय में से मुक्त करो । स्त्री-पुरुष के विषय से बैर खड़ा होता है। वह बैर ही कितने जन्म बिगाड़ देता है।
प्रतिक्रमण से सर्वप्रथम तो खुद का अतिक्रमण रुकता है और उल्टे भाव टूटते हैं। सामनेवाले को तो वह बाद में पहुँचता है और नहीं पहुँचे, तब भी वह नहीं देखना है । यह तो अपने खुद के लिए ही है सारा !
बाघ के प्रतिक्रमण हों, तो वह बाघ भी अपने कहे अनुसार करेगा । बाघ में और मनुष्य में कुछ भी फर्क नहीं । अपने स्पंदनों के फर्क के कारण बाघ पर उसका असर होता है । बाघ हिंसक है, ऐसा जब तक आपके ध्यान में है, बिलीफ़ में है, तब तक वह हिंसक ही रहेगा और बाघ 'शुद्धात्मा' है, ऐसा ध्यान रहे तो वह 'शुद्धात्मा' ही है !
खुद की तरफ से छेड़खानी बंद हुई, खुद के स्पंदन रुके, तो सामने कोई भी स्पंदन करनेवाला नहीं मिलेगा और पूर्वाभ्यास से स्पंदन फिंक जाएँ तो प्रतिक्रमण द्वारा धो डालना, वही पुरुषार्थ है !
कर्मरूपी पच्चड़ को फ्रेक्चर किस तरह किया जाए? ‘फाइलों का समभाव से निकाल' करके । हमें फाइलों को देखते ही मन में पक्का करना चाहिए कि 'मुझे समभाव से निकाल करना ही है।' तो उस अनुसार सबकुछ प्रबंधित हो ही जाएगा और शायद कभी चीकणी फाइल हो, वहाँ ऐसा करने के बाद भी निकाल नहीं हो पाए, तो फिर आप गुनहगार नहीं हैं, व्यवस्थित गुनहगार है।
20