Book Title: Alankar Chintamani
Author(s): Ajitsen Mahakavi, Nemichandra Siddhant Chakravarti
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 18
________________ प्रस्तावना का उद्घाटन करते हैं। अलंकारोंका प्रयोग जीवनके कार्य व्यापारोंको आकर्षक बनानेमें है। इनसे भाषा और भावोंकी नग्नता दूर होकर उनमें सुषमा और सौन्दर्यकी सृष्टि होती है। . वस्तुतः अलंकार केवल काव्यको अलंकृत करनेका उपकरण ही नहीं है, बल्कि ५... ग पात्र में निहित मनोवैज्ञानिक सौन्दर्यको स्पष्ट करनेका साधन भी है। अलंकारशासियोंने अलंकार योजना द्वारा काव्यमें निम्नलिखित तथ्योंका समावेश किया है। १. सौन्दर्योत्पादन । २. चमत्कारप्रवणता। ३. प्रभावोत्पादन । ४. अभिव्यंजनाका वैचित्र्य । ५. स्पष्ट भावावबोधन । ६. वस्तुजगत्में प्रच्छन्नभावको विभिन्न दृष्टिसे उभारकर गतिमत्तोत्पादन । ७. बिम्ब-ग्रहणार्थ चित्रयोजन । ८. रस-उपस्करण । ९. संगीतात्मकता-उत्पादन । १०. साहचर्य जागृत कर अन्विति-सर्जन । इस प्रकार अलंकार शास्त्रियोंने अलंकारको काव्यके लिए आवश्यक माना है । अलंकारके अन्तर्गत काव्योत्पत्तिके साधन रस-भाव प्रक्रिया, गुण-दोष विवेचन आदि भी अभिप्रेत हैं। अलंकारशास्त्रके ग्रन्थोंका प्रारम्भ भरतके नाट्यशास्त्रसे होता है । इसके पश्चात् भामह, दण्डी, उद्भट और रुद्रटने इस शास्त्र-सम्बन्धी ग्रन्थोंका प्रणयन किया है। वामनने काव्यालंकार सूत्रवृत्ति लिखकर एक नवीन शैलीका प्रवर्तन किया है। मम्मट, विश्वनाथ आदिने भी अलंकारशास्त्र सम्बन्धी सिद्धान्तोंका ग्रथन कर अलंकारशास्त्रको सुनियोजित और समृद्ध बनाया है। इसी परम्परामें अलंकार चिन्तामणिके रचयिता अजितसेन भी आते हैं। अजितसेनने अलंकार लक्षणोंके अतिरिक्त काव्यके अन्य महत्त्वपूर्ण उपकरणोंका भी निर्देश किया है। काव्य-सम्बन्धी रचना-प्रक्रियाच ऐसा सांगोपांग विवेचन कम ही स्थानोंमें उपलब्ध होगा। अलंकारचिन्तामणिकी विषय-वस्तु अलंकारचिन्तामणि पाँच परिच्छेदोंमें विभक्त है। प्रथम परिच्छेदमें एक सौ छह पद्य हैं। इनमें कवि-शिक्षा पर प्रकाश डाला गया है। कवि-शिक्षाकी दृष्टिसे यह परिच्छेद बहुत ही महत्त्वपूर्ण है । महाकाव्य निर्माताको कितने विषयोंका वर्णन किस रूपमें करना चाहिए, इसकी सम्यक् विवेचना की गयी है। मंगलाचरणके पश्चात् इस ग्रन्थको अलंकार ज्ञान प्राप्त करानेका प्रमुख साधन बताया है। पंचम पद्यमें इसे स्तोत्र कहा है । लिखा है-"इस अलंकार ग्रन्थमें अलंकारोंके उदाहरण प्राचीन पुराण ग्रन्थ, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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