Book Title: Agam Sudha Sindhu Part 08
Author(s): Jinendravijay Gani
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala
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________________ प्रकीर्णकानि :: 1 चतुःशरणप्रकीर्णकम् ] सिद्धसरणेण नववंभ-हे उसाहुगुण-जणिबहुमाणो (अणुरायो) / मेइणिमिलतसुपनत्य-मन्थयो तत्थिमं भणइ // 30 // जिग्रलोअवंधुणो कुगइसिंधुणो पारगा महाभागा / नाणाइएहिं सिवसुक्ख-साहगा साहुणो सरणं // 31 // केवलिणो परमोही विउलमई सुग्रहरा निणमयंमि। पायरिय उवज्झायो ते सब्बे साहुणो सरणं // 32 // चउदसदसनवपुवी दुवालसिकारसंगिणो जे अ / जिणकप्पाहालंदिअ परिहारविसुद्धिसाहू अ॥ 33 // खीरासवमहुअासवसंभिन्नस्सोअकुटुबुद्धि य / चारणवेउविपयाणुसारिणो साहुणो सरणं // 34 // उझियवइरविरोहा निश्चमदोहा पसंतमुहसोहा। अभिमयगुणमंदोहा हयमोहा साहुणो सरणं // 35 // खंडिअसिणेहदामा अकामधामा निकामसुहकामा / सुपुरिसमणाभिरामा आयारामा मुणी सरणं // 36 // मिल्हियविसयकसाया उझिपघरवरणिसंगसुहसाया / अकलिग्रहरिसविसाया साहू सरणं गयपमाया // 37 // हिंसाइदोससुन्ना कयकारुन्ना सयं. भुरुप्पन्ना(प्पुराणा) / अजरामरपहखुन्ना साहू सरणं सुकयपुन्ना // 38 // कामविडंबणचुका कलिमलमुक्का विवि(मु)कचोरिका / पावरयसुरयरिका साहू गुणरयणच(वि)चिक्का // 31 // साहुत्तसुट्ठिया जं पायरियाई तयो य ते साहू / साहुभणिएण गहिया तम्हा ते साहुणो सरणं // 40 // पडियन्नसाहुसरणो सरणं काउं पुणोवि जिणधम्मं / पहरिसरोमंचपवंच-कंचुचिय-तणू भाइ // 11 // पवरसुकरहिं पत्तं पत्तेहिवि नवरि केहिवि न पत्तं / तं केवलिपन्नत्तं धम्म सरणं पवन्नोऽहं // 12 // पत्तेण अपत्तेण य पत्ताणि श्र जेण नरसुरसुहाई / मुक्खसुहं पुण पत्तेण नवरि धम्मो स मे सरणं // 13 // निदलिअकलुसकम्मो कयसुहजम्मो खलीकय अहम्मो / पमुहपरिणामरम्मो सरणं मे होउ जिणधमो।। 44 // कालत्तएहि न मयं जम्मणजरमरणवाहिसयसमयं / अमयं व बहुमयं जिणमयं च सरणं पवन्नोऽहं // 45 // पसमित्रकामपमोहं दिट्ठादिद्रुसु नकलिअविरोहं / सिवसुहफलयममोहं धम्मं सरगां
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