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गाथा संख्या विषय
प्रतिपादन |
४७९०-४७९३ अनुकड्य, अनुभित्ति आदि पदों की व्याख्या तथा उनसे संबंधित अवग्रहों का प्रमाण ।
राजा के अधीन अवग्रहों का स्वरूप तथा उनका प्रमाण ।
४७९४
४७९५
४७९६,४७९७ मासकल्प वाले क्षेत्र में शत्रुसेना, अशिव, अवमौदर्य आदि कारण जानकर वहां से निर्गमन की विधि । अन्यथा प्रायश्चित्त और आज्ञाभंग आदि दोष ।
४७९८
अवधिज्ञान आदि के द्वारा अशिव होने की सूचना जानकर उससे पहले ही निर्गमन करने की विधि। किन कारणों में क्षेत्र से निर्गमन नहीं किया जा सकता ?
४८००-४८०९ कई कारणों से क्षेत्र से निर्गमन न होने पर यहां किन-किन यतनाओं का अनुवर्तन होना चाहिए, उसका विवेक ।
यतना के पांच प्रकार ।
४८१० ४८११-४८२० रोध के समय आठ वसतियों की प्रत्युपेक्षा करने की विधि। उनमें एक-एक मास रहने का कल्प। आठ वसतियों के अभाव में क्रमशः हानि होते होते एक ही वसति की प्रत्युपेक्षा । उसमें रहने की विधि और यतनाएं।
४७९९
४८२१-४८२३ प्रथम स्थंडिल की प्राप्ति न होने पर शेष स्थंडिलों में गमन करते समय मात्रकग्रहण तथा व्युत्सर्ग करने की विधि।
४८२४
४८२५
४८२६
सेणा पर्व सूत्र ३३
गांव के चारों ओर परिखायुक्त प्राकार के निर्माण का कारण तथा राजा के अवग्रह में बहिर्गमन और प्रवेश विधि |
४८२७
४८२८
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मुनि के शव को परिष्ठापित करने की विधि | राजाज्ञा से शव को परलिंग करने का कारणविधि तथा न करने पर दोष ।
रोध के समय गोचरी कहां और कहां नहीं करनी चाहिए ? तद्विषयक यतना।
आभ्यन्तर में प्रचुर अन्नपान की प्राप्ति होने पर बाहर जाने का निषेध उससे लगने वाले दोष और प्रायश्चित्त
आभ्यन्तर में पर्याप्त भक्तपान न मिलने पर
गाथा संख्या विषय
पंचक प्रायश्चित्त विधि से एषणा का प्रयत्न । अविशोधि कोटि दोषयुक्त भक्तपान लेने की विधि।
४८२९-४८३१ रोध के समय गोचरी के लिए द्वारपाल को
जताकर बाहर जाने की अनुमति। आरक्षकों के द्वारा भक्तपान की व्यवस्था ।
४८३२
बाहर जाने वाले मुनियों के गुण ।
४८३३,४८३४ बहिर्गमन करने वाले मुनि के लिए अन्यजनों से सावध बातें सुनते हुए भी प्रत्युत्तर देने का निषेध | ४८३५,४८३६ मुनि कहां भोजन करे कहां नहीं? बहिर्गमन में सचित्त अर्थात् शैक्ष को प्रव्रज्या देने का निषेध | ४८३७,४८३८ बाहर भोजन करने के बाद नगर में प्रवेश करते समय द्वारपाल को भोजन देने न देने की विधि तथा चारिका की आशंका न हो, इस कारण से द्वारपाल को निवेदन ।
बहिर्निर्गत मुनि के लिए बाहर रहने के आपवादिक कारण।
४८३९
सूत्र ३४
४८४०
क्षेत्र प्रमाणविषयक सूत्र का कथन ।
४८४१-४८४५ अवग्रह की विविध दृष्टिकोणों से व्याख्या । ४८४६-४८४८ अन्तरपल्लियों का अवग्रह तीन गच्छों के लिए साधारण दोनों प्रकार की उपधि और शैक्ष क्षेत्रीय मुनियों के आभाव्य ।
क्षेत्रीय मुनि आदि अक्षेत्रीय मुनियों को वस्त्र नहीं दे तो तीन प्रकार का प्रायश्चित्त ।
४८४९
४८५०
४८५१ ४८५२
बृहत्कल्पभाष्यम्
४८५७
४८५३-४८५५ अवग्रह कहां नहीं ? ४८५६
४८५८
४८५९
४८६०
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अक्षेत्रीय मुनियों का क्षेत्रीय मुनियों के स्थान में रहने से असंस्तरण पर प्रायश्चित्त ।
सीमा बनाकर रहने का निर्देश ।
वृषभग्राम की व्याख्या और उसमें रहने वाले मुनियों की संख्या का निर्देश ।
गृहस्थों को वस्त्रादिक देने का निषेध करने वालों से गण को हानि।
एक वसति में स्थित मुनियों के अवग्रह की मार्गणा ।
उपाश्रय में स्वाध्याय भूमी आदि सबके लिए
साधारण ।
चल क्षेत्र कौन से ?
साधारण अवग्रह कब ? कैसे ?
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