Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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८.
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जीवामिगमस्ते तिष्ठन्ति किमिति प्रश्नः, भगवानाह-हे गौतम ! 'हंता यत्थि' हन्त सन्ति यथा स्वया पृष्टानि तथैव तादृशानि तानि द्रव्याणि तिष्ठन्ति, इलि । 'सक्करभाए ण भंते ! पुढवीए' शर्कराममायाः खलु भदन्त ! पृथिव्याः 'घणोदहिवलयरस सतिभाग छनोरणवाइलस्स घनोदधिवलयस्य सविभाग पड्योगनवाइल्यस्य 'खेतच्छेएण छिज्जमाणस जाब' क्षेत्रच्छेदेन छिद्यमानम्य सन्ति द्रव्याणि, वर्णतः कालादीनि, गन्धतः सुरभिदुरभिगन्धानि, रसत:-विक्तादीनि, स्पर्शतः कर्कशादीनि, संस्थानतः परिमण्डलसंस्थानपरिणतानि, अन्योन्यवद्धादिविशेषणयुक्तानि अन्योन्य समुदायरूपेण तिष्ठन्ति किम् ? भगानाह-हे गौतम ! 'हंता अस्थि' से मिले रहते हैं क्या ? उत्तर में प्रभु कहते हैं-'हंता, अस्थि' हा गौतम! तद्गत द्रव्य तूने जैसा पूछा है उसी प्रकार से इन पूर्ण क्त विशेषणों वाले होते हैं। 'लकरप्पमाए णं भंते ! पुढबीए घणोदधि वलयास सतिभाग छ जोयणधाहल्लास खेत्तच्छेएण छिन्नमाणस जाव' हे भदन्त ! शर्करा प्रभा पृथिवी का जो घनोदधि वात वलय है कि जिसकी योजन के तृतीय भाग सहित ६ योजन की मोटाई है उसके क्षेत्रच्छेद से विभाग करने पर तद्त द्रव्य वर्ण की अपेक्षा क्या कृष्ण आदि वर्ण से परिणत होते हैं क्या? गंध की अपेक्षा सुरभि दुरभि गंध से परिणत होते हैं क्या ? रस की अपेक्षा तिक्तादि रस रूप से परिणत होते हैं क्या ? स्पर्श की अपेक्षा फर्क शादि स्पर्श से परिणत होते हैं क्या? तथा संस्थान की अपेक्षा वे परिमंडल आदि संस्थान ४९ छ 'हता भत्यि' हा गौतम ! तभा २स द्र०य तमे २ शत प्रश्न કરેલ છે, એજ પ્રકારનું એટલે કે આ પૂર્વોક્ત વિશેષવાળું હોય છે.
'सक्करप्पभाए ण भते ! पुढवीए घणोदधिदलयस्स सतिभाग छ जोयणपाहल्लस्स खेत्तच्छेएण छिज्जमाणस्स जाव' सन् २मा पृथ्वीनार ઘદધિ વાત વલય છે, કે જેની વિશાળતા યોજનના ત્રીજા ભાગ સહિત ૬ છ જનની છે તેના ક્ષેત્રછેદથી વિભાગ કરવામાં આવે તેમાં રહેલ દ્રવ્ય વર્ણની અપેક્ષાથી શું કૃષ્ણ વિગેરે વર્ણવાળું હોય છે ? ગધની અપેક્ષાથી સુરભિ, સુરભિ ગંધથી પરિણત હોય છે? રસની અપેક્ષાથી તીખા, કડવા રસવાળું હોય છે? સ્પર્શની અપેક્ષાથી કર્કશ વિગેરે સ્પર્શથી પરિણત હોય છે? તથા સંસ્થાનની અપેક્ષાથી પરિમંડલ વિગેરે સંસ્થાનપણથી પરિણત થાય છે? આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં પ્રભુ ગૌતમસ્વામીને કહે છે કે હે ગૌતમ! 'हंसा अस्थि, ते पूरित विशेष पाहाय छ