Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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जीनाभिगमसूर्य
घण्णवालि ससिसूर-उसम चक्कातल भंगतुडिय इस्थमालय दलक्खदीणार मालिया' हाराहार तनक मुकुट कुण्डल दामोत्तग हेमजाल मणिजालकनकजाल सूत्र कोच्चयित कटक क्षुकैकादलि कण्ठ सूत्रमकरिकोरः स्कन्धवेय श्रोणी मूत्रकचूडामणि कनकतिलक पुष्पक सिद्धार्थक कर्णपालि शशिभूर्यऋषभचक्र कतल भङ्कक त्रुटित हस्तमालका-लक्षदीनार मालिकाः, तत्र हारोऽष्टदशसरिका, अर्धारो. नवसरिका, वर्तनका-कर्णाभरणविशेषः, मुकुट, कुण्डलम्, लोक-मसिद्धमेव, चामोत्तकं हेमनाल सच्छिद्र सुवर्णालङ्कारविशेषः एवम्-मणिजाळ कनकजाले अपि कर्णाभरणविशेषरूपे एव, अनयो शो लोकादय सेयः, सनकम्-सुवर्ण सूत्रम् सच्विय फडग खुडूडिय एकावलकंठसुत्तमगरिपाउरखंधगेवेज्ज लोणिसुत्तम- चुडामणि मग तिला फुल्ल लिदत्यय कण्णवालि ससिसूर उसमचरगतलभंग तुडिय हस्थ मालगवलक्ख दीणार मालिया जिस प्रकार से थे जगप्रसिद्ध आभूषण है जैले-कि हार, आहार, वेष्टनक, मुकुट, कुण्डल, वामोत्तक, हेमजाल, मणिजाल, कनक जाल, सुवर्ण सूत्र, अच्चयित कटक, क्षुद्रिका (मुद्रिका) एकावलि हा, कंठसूत्र मकरिका, उरस्कन्ध ग्रैवेघश, श्रेणीमत्र, चूडामणि, कनकतिलक, पुष्पक्ष, सिद्धार्थक, पर्णशाली, शशि, सूर्य, ऋषभ, चक्रातल भङ्गक, त्रुटित, हस्तमालक और दरक्ष इनमें अठारहलरों का हार होता है नौ लरों का अर्धहार होता है जो कर्ण का आभाण विशेष होता है उस का नाम वेष्टलक है मुकुट और कुण्डल ये प्रसिद्ध ही हैं। छिद्र सहित जो सुवर्ण का आभरण विशेष होता है उसका नाम चामोत्तर-हेमजाल है मणिजाल और कनकजाल ये भी कोनो के एक वलिक'ठ सुत्तमगरि मउरव खंधगेवेज सोणिसुत्तग चूडामणि कणगतिलग फुल्लसिद्धत्थय कण्णवालिससिसुरउसभ चक्कगतलभंगतुडियहत्थ मालगवलक्ख दोणारमालिया' के प्रमाणे मा प्रसिद्ध मानुषो छ भ डा२, सहार, वेष्टन. मुकुट, दुस, पामत, रमलत, मशिला, पनsanel, सुसूत्र, भयवित८४, शुद्रिी, (भुद्रिी) पति, सूत्र, भ२ि४, ७२२४५, वय, श्रेणीसूत्र, यूडामणि, नतिय, ०५४, सिद्धार्थ, ४ पाली शशि, सूर्य, अषम य, तसल, वटित, हस्तमास, सन सक्ष, मा માં અઢાર સેરોવાળો હાર હોય છે નવસેરોવાળે અર્ધહાર હોય છે. કાનનું જે આભરણ વિશેષ હોય છે, તેનું નામ વેષ્ટનક છે મુકુટ અને કુંડલ એ પ્રસિદ્ધજ છે. છિદ્રવાળું જે સોનાનું આભૂષણ હોય છે, તેનું નામ “વામોત્તક હેમાલ છે. મણિજાલ અને કનકાલ, એ પણ કાનના આભરણ વિશેષજ છે.