Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रद्योत का टीका प्र. उ. ३.४९ वानव्यन्तरदेवानां भवनादिकम् ૯૭૨ धानायां पदि 'अड देवसादरसीओ पनचाओ' अष्ट देवसहस्राणि मज्ञप्तानि, तथा - 'मज्झिमपरिसाए दसदेवसाहस्सी ओ पन्नत्ताओ' माध्यमिकायां पर्पदि दशसंख्यानि देवसहस्राणि ज्ञतानि, तथा - 'बाहिरियाए परिसाए बारसदेवसाहस्सी भो पद्मत्ताओ' बाह्यपदि द्वादश देवसहस्राणि मज्ञानि एवम् - 'मरिया परिसाए एगं देविसयं पन्नत्तं' अभ्यन्तरिकायां पर्पदि एक देवीशतं प्रप्तम्, तथा - 'मज्झिमया परिसाए एवं देविस पन्नत्तं' माध्यमिकायां पर्पदि एक देवीशतं मज्ञप्तम्, 'वाहिरियाए परिसाए एवं देविस पन्नत्तं' बायां पर्षदि एक देवीशतं प्रज्ञप्तम् इति ॥
अथ पर्वतदेवदेवीनां स्थितिविषये प्रश्नयन्नाह - 'कालस्स णं' इत्यादि, 'कालस्स णं भंते!' कालस्य खड भदन्त ! 'पिलाय कुमारिदस्त पिसाय कुमाररायस्स' पिशाचकुमारेन्द्रस्य पिशाचकुमारराजस्य, 'अतिरियाए परिसाए' आभ्यराजकाल इन्द्र की आभ्यन्तर परिषदा में आठ हजार देव कहे गये है । 'मज्झिमघाए दस देव साहसीओ पन्नत्ताओ' मध्यमिका सभा में दसहजार देव कहे गये है । 'बाहिरियाए परिसाए बारसदेव साहस्सीओ पन्न ताओ' वायपरिषदा में १२ हजार देव कहे गये है । तथा 'अभितरियाए परिसाए एवं देविस पण्णत्तं 'आभ्यन्तर परिषदा में एकसौ देवियां कही गई है 'मज्झमियाए परिसाए एवं देविसयं पण्णत्तं' मध्यमिका सभा में भी एक सौ देवियां कही गई है। 'बाहिरियाए परिसाए एगं देविस पन्न' तथा वायपरिषद में भी एक सौ देवियां कही गई है।
अब उन सब की स्थिति का कथन करते है । 'कालस्स ' इत्यादि, 'कालस्य णं भंते! पिसाधकुमारिंदरस पिलायकुमारगपस्ल अविभतरिसीओ पन्नत्ताओ' गौतम । पिशान्यकुमारेन्द्र पिशाच भारराज भवनी माभ्यन्तर परिषदामां आहे तर ८००० देवे। ह्या छे, 'मज्झिमियाए दस देव साहसीओ पण्णत्ताओ' मध्यमिश्रा सलाम १०००० इस डेन्नर हेवा ह्या छे. 'बाहिरिया परिखाए बारसदेव साहसीओ पण्णत्ताओ' हे गौतम ! बाह्य परिषहाभां १२००० मार उन्नर हेवे। उह्या छे. 'अभितरियाए परिखाए एवं देविस पण्णत्त' तथा आभ्यन्तर परिषदामां थे। सेो देवियो उड्डी छे. मज्झि मियाए परिसाए एवं देविखयं पण्णत्त' मध्यमिश्र सलभां योऽसो १०० हेविया ही छे. 'बाहिरियाए परिसाए एग देविखयं पन्नत्त' मा पदिषाभां પણ એક સા વિચા કહી છે.
હવે આ ઉપરોક્ત સઘળા દેવ દેવિચૈાની સ્થિતિનું' કથન કરવામાં આવે છે. 'कालास ण" इत्यादि
'कालस्स णं भंते । पिसायकुमारिदस्य पिसायकुमार रायस्स अभितरियाए