Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 887
________________ प्रमेययोतिका ठीका १.३ ७.३ . ५३ वनपण्डादिकवर्णनम् ८६१ प्रतिपादनार्थमाह- 'मणामतराए चेव ' मन आमतरक एव, मनांसि आम्यन्तेआत्मवशतां नयन्ति इति मन आमतरक एव तेषां तृणानां मणीनां च कृष्णोवर्णावासः 'वण्णेणं पन्नत्ते' वर्णेन मइस कथित इति । अथ गौतम नीलवर्णविषये पृच्छति - 'तत्थ णं जे ते गीगा तणा य मणीण य' तत्र तेषां तृणानां मणीनां च मध्ये खलु यानि तानि नीलानि तृणानि ये ते नीला मणयश्च 'सेसि णं तेषां खलु तृगानां मणीनां च 'इमेयारूवे वण्णावासे पन्नत्ते' किम् अयम्- अनन्तोद्दिश्यमान, एतावद्रूपः- वक्ष्यमाणस्वरूपो वर्णावास - वर्णनिवेशः प्रज्ञष्टः- कथितः ? देव दर्शयति- 'से जहा णामए' उद्यथा नामकम् 'भिंगेड़ वा' भृङ्ग इति वा, भृङ्गः - (मिंगोडी' इति प्रसिद्धः पक्षशन लघुनन्तु विशेषः, 'पित्ते वा' भृङ्गपत्रमिति वा, तस्यैव भृङ्गाभिधानस्य जन्तुविशेषस्य पक्षम 'चासे वा' चाप इति वा, चापः पक्षिविशेषः 'चासपिच्छे वा' चाषपिच्छमिति वा, चापपिच्छं चापस्य पक्षः 'सुपति वा' शुक इवि वा. नीलवर्णः शुकः पक्षी 'सुपिच्छे वा' शुक्रपिच्छमिति वा 'पीलीति वा' नीली इति वा नीली 'नील' से 'मनोज्ञसर' पद निष्पन्न हो जाता है । इस तरह जो अतिशयरूप से मन के अनुकूल होता है वह मनोज्ञतर है । कोई २ मनोज्ञनर पदार्थ भी मध्यम होता है - अतः इन की कृष्णता में सर्वोत्कर्पता प्रतिपादन करने के fafe 'मणामनराएचेव' यह पद कहा गया है जो मन को अपने वश में कर देता है, वह मनोम है यहां पर भी प्रकर्ष की विवक्षा में तर प्रत्यय हुआ है। इस प्रकार के कृष्णवर्ण से युक्त यहां के मणि और तृण कहे गये है । अब श्रीगोतमस्वामी नीलवर्ण के विषय में पूछते है- 'तस्थ णं भंते नीलगा तथा य सणी व वहां पर जो नीलेवर्ण के तृण और मणि कहे गये है 'तेषि णं हमेघारूवे वण्णावासे पत्ते' उनका वर्णवास इस प्रकार कहे है क्या ? 'से जहानामए भिंगेह या भिंग वाचासे वा चासपिच्छे वा, सुरति वा सुपपिच्छेइ वा, पीलीति वा, नीली भेएह वा' जैसा नीला भृंग होता है जिसको મનેમ કહેવ ય છે. અહીયાં પણુ પ્રા'ની વિવક્ષામાં તરપૂ પ્રત્યય થયેલ છે. એવી રીતના કૃષ્ણ વણુ વાળા ત્યાંના મણિયે અને તૃણ્ણા હોય છે તેમ કહેલ છે. हवे श्रीभतभस्वामी नीसवाना संबंधमां अनुश्रीने पूछे छे 'तत्थ णं भवेणीला तणाय मणी य' त्यां ने नीस वर्षावाणा तुमने भदियो सा छे 'वेखि णं इमेयारूवे वण्णावासे पण्णत्ते' तेतु वर्षान आ ते ताववाभां मावेस छे से जहानामए भिगेइना भिगपत्तेइवा, चासेइबा चासविच्छेइवा सुइ वा सुयापच्छेइवा पीळीतिवा पीलीभेपइवा' भृंग नेवा नीस ना हाय है,

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