Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 900
________________ ८७४ जीवामिगमसूत्र मणीय' तेषां खलु शुक्लानां तृणानां मणीनां च 'एत्तो इतगए चेन जाब वष्णेणं पन्नत्ते' इत:-अनादिभ्य इष्टतरक एव प्रियतरक गव कान्ततरक एवं मनोज्ञतरक एव मन आममरफ एव, शुक्लो वर्णावासः वर्णन मशत इति। तदेवं क्रमेण वनपण्डान्तर्गतानां तृणानां मणीनां च वर्णदरूपं कथितं सम्मति तेषां गन्धस्वरूपप्रतिपादनार्थमाह-अत्र गौतमः पृच्छति 'तेसिणं मंते ! तणाण य' इत्यादि, 'तेसिणं भंते ! तणाण य पणीण य' तेषां खल भदन्त ! तपानी मणीनां च 'केरिसए गंधे पन्नत्ते' पीशः किपाकारको सन्ध: मसात काय किं वक्ष्यमाण-वस्तूनां यादृशो गन्धो मनति तादृश स्तेपो गन्धः प्राप्तः ? तदेव दर्शयति-'से जहाणामए' इत्यादि से जहाणामप' तद्यथा नामकम् 'कोटपुडाण वा' कोष्ठ पुटानामिति वा, सोप्ट गन्धद्रव्यं तस्य पुटा कोष्टपुटा स्तेपाम् वा शब्दाः सर्वत्रापि समुच्चये, अन एकस्य पुटस्य न नामो गन्धविशेपो शुक्ल तृणों और मणियों का वह शुक्ल रूप 'एत्तो इतराए चेष जाव घण्णणं पन्नत्ते' इन प्रदर्शित अङ्क आदिकों से भी अभिक इष्ट अधिक प्रिय, अधिक कान्त, अधिक मनोज्ञ और अधिक मनोऽम कहा गया है इस प्रकार से वनखण्ड के अन्तर्गत तृणों का और मणियों के वर्ण का स्वरूप कहकर अय मुत्रकार गन्ध के स्वरूप का प्रतिपादन करते है 'तेसि णं भंते' इत्यादि इस विषय में श्रीगौतमस्वामी पूछते है 'तेसि णं भंते! तणाण य मणीण य केरिलए गंधे पण्णत्ते' इसमें श्रीगौतमस्वामी ने प्रभुश्री से ऐसा पूछा है-हे भदन्त ! वहां के तृणों का और मणियो.का कैसा गन्ध कहा गया है ? क्या आगे कहे जाने वाले कोष्ठ पुट आदि वस्तुओं का जैसा गंध होता है वैसा कहा गया है क्या? उन्हीं को कहते है 'से जहाणामए कोहपुडाण वा' जैसी गन्ध-वास-कोष्ठ गन्ध भणियाना में सई एत्तो इट्टतराए चेव जाव पण्णेणं पण्णत्ते' मा ५२ કહેવામાં આવેલ અંક વિગેરેની શ્વેતતાથી પણ વધારે ઈષ્ટ વધારે પ્રિય વધારે કાંત વધાર મનેઝ અને વધારે મનેમ કહેવામાં આવેલ છે. આ રીતે વનખંડની અંદર આવેલ તૃછે અને મણિના વર્ણનું સ્વરૂપ બતાવીને હવે સૂત્રકાર ગંધના સ્વરૂપનું વર્ણન કરે છે. આ વિષયમાં શ્રી ગૌતમસ્વામી श्रीमहावीर प्रभुने पूछे छे हैं 'तेसि णं भते! तणाणय प्रणीणय केरिसए गधे पणत्ते' मगवन् त्यांना तु! म मशियाना व साय छ ? शु. નીચે કહેવામાં આવેલ કેષ્ટપુટ વિગેરે વસ્તુઓને ગધ જે હેય છે, તે मना मध डाय छ १ 'से जहा नामए कोट्रपुडाणवा' २वी गध-पास घुट नाभना आय व्यनी हाय छे. 'पत्तपुडाणवा' २वी पत्रपुटोना भईन ४२पाथी

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