Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 907
________________ प्रमेययोतिका टीका प्र.३ उ.३६.५३ वनपण्डादिकवर्णनस् काया वा 'संदमाणीयाए वा स्यन्दया निकाया वा 'रहबरस वा रथवरस्य वा तत्र शिविका जम्पानविशेषरूपा उपरिछादिता कोष्ठाकारा, तथा दीर्घा जम्पानविशेषः पुरुषस्य स्वप्रमाणावकाशदात्री स्यन्दमानिका, अनयोश्च शब्दः पुरुषोत्पा. टितयोः क्षुद्रहेमघण्टिकादि चलनवशतो वेदितव्या स्थश्च द्विविधो भवति संग्रामरथः क्रीडारयश्च, अत्र संग्रामस्थो ज्ञातव्यो नतु क्रीडारथः क्रीडारथस्याग्रिमविशेषणानामसं मनात, तस्य स्थस्य फलवेदिका यस्मिन् काले या पुरुषस्तदपेक्षया कटिममाणाऽक्सेया, तस्यैव रथस्य विशेषणानि दर्शयति-'सच्छत्तस्स' इत्यादि, 'सच्छत्तस्स' सच्छत्रस्य, छत्रेण सहितः सच्छत्रस्तस्य सच्छत्रस्य 'मज्झयस्स' सधजस्य-ध्वजाविशिष्टस्य 'सघंटयम सघण्टासस्य उभयपाविलम्बि महा प्रमाणघण्टोपेनस्य 'सतोरणवररूम' सहयोरणवरं प्रधानं तोरण यस्य स सतोरण वरस्तस्य 'सणंदिघोसम्स' सनन्दिघोषस्य सहनन्दिघोपो द्वादशर्यनिनादो यस्थ स सनन्दिघोषस्य 'सखिखिणि हेमजाळपेरंतपरिक्खित्तस्स स किंकिणीहेमजाल आदि के उस पुरुषों द्वारा अपने अपने स्कन्धों पर उठाये जाने पर जैसे शब्द शिविकाझी-उपर में वस्त्रादिले ढकी हुइ कोष्ठ के आकार वालो जम्पान विशेषरूपालखी की छोटी छोटी हेमनिर्मित घंटिकाओं के हिलते ममय जैसे निकलते है। तथा इली प्रहार से पालखी के आकार में कुछ वडी तथा बैठे हुए पुरुषों में अपने अपने प्रमाणानु. रूप अवकाश स्थान देनेवाली ऐसी स्पन्दमानिका की छोटी २ हेननिर्मिन घण्टिकाओं की हिलते समय जैसी शाहाज निकलती है, उसी प्रकार की आवाज इन तृणों और पणियों से वायु द्वारा हिलाये जाने पर निकलती है इसी प्रकार छत्तल सज्जयस्मा, संघटयस्त सतोरणवरस्स' जो छन से यक्त होवजा से युक्त हो दोनों ओर लटकती हुइ महाप्रमाणोपेन्द्र घंटाओं से युक्त हो उत्तमतोरण ले युक्त हो शम् तेना होय छे ? रभ से जहाणामए सिबियाएवा' 21ना से પૂરૂષ દ્વારા પિતા પોતાના ખભાઓ ઉપર ઉઠાવવામાં આવે ત્યારે જે શબ્દ શિબિકા અર્થાત પાલખીની નાની નાની સુવર્ણ નિર્મિત ઘંટડિયાના હાલવાથી થાય છે, અને એ જ રીતે પાલખીના આકારથી કંઈક મટિ તથા અંદર બલા પુરૂષને પિતાના પ્રમાણાનરૂપ અવકાશ-જગ્યા આપવાવાળી સ્પંદમાનકાની નાની નાની સર્ણની બનાવેલી ઘંટડિયાના હલવાથી જે શબ્દ ળ છે, એજ રીતનો શબ્દ એ છે અને મણિયાને પવનથી હલાવવામાં भाव त्यारे नाणे १ का प्रमाणे 'सत्तस्स सज्जयस्त्र सघंटस्स सतोरणઆજે છત્ર યુક્ત હય, ધજાથી યુક્ત હય, બન્ને બાજુએ લટકાવવામાં जी० १११

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