Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 810
________________ ७८६ जीवामिगमले यावद् विहरतः । सूर्यस्य खलु भदन्त ! ज्योतिप्केन्द्रस्य ज्योतिष्पराजस्य कति पर्षदः प्रज्ञप्ताः ? गौतम ! तिल. पर्षदः प्रज्ञप्ताः, तद्यथा तुंवा, त्रुटिता प्रेत्या, आभ्यन्तरिका तुरवा, माध्यमिका त्रुटिता वाहत्या प्रेक्ष्या, शेष' यथा कालस्य परिमाणं स्थितिरपि, अर्थों यथा चमस्य । चन्द्रस्याप्येवमेव ॥मु०५०।। ___टीका-'कहि णं भने !' कुत्र-कस्मिन् रथाने खस भदन्त ! 'जोइसिपाणं देवाणं' ज्योतिष्काणां'-चन्द्र सूर्यग्रहतारानक्षत्राणां देवानाम् 'विमाणा पन्नता' विमानानि प्रज्ञप्तानि-कथितानि, 'कहिणं भंते' कुत्र खलु भवन्त ! 'जोइसिया देवा परिवसति' ज्योतिका देवाः परिवसन्ति ? इति गौतमस्य प्रश्नः, भगवानाह'गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम ! 'उपि दीसमुदाण' उपरि द्वीप समुदाणाम् 'इमोसे स्यणप्पभाए पुढवाए' पतस्या रत्नप्रभायाः पृथिव्या 'बहुसम. रमणिज्जाभो भूमिभागाओ' बहुसमरमणीयात् भूमिभागाद् रुचकोपलक्षिता 'सत्ताणउए जोयणसए उड्ड उप्पइत्ता नवत्यधिकानि सप्तयोजनशतानि (७९०) ऊर्ध्वमुत्प्लुन्य-बुद्धयाऽतिक्रम्य 'दसुत्तरस्या जोयणवाहल्लेणं' दशोत्तरयोजनशत वाइल्ये (११०) 'तत्य णं जोरसि गाणं देवाणं' तत्र-तादृशस्थाने खलु ज्योतिवसंति' कहां पर ज्योतिषक देव रहते है। इस प्रश्न के उत्तर में प्रभुश्री कहते है 'उपि दीपसमुद्दाणं इमोसे रयणप्पभाए पुढबीए घहममरमणि. ज्जाओ भूमिभागाओ वत्ताण उए जोयणलते उडूं उप्पिहत्ता सुत्तरसया जोयणबाहल्लेणं, तशण जोलियाण देश णं निश्चिमसंखेनामोजोहसियविमागावालवयसहस्सा भवतीतिमक्खाय' हे गौतम द्वीप एवं समुद्रों से ऊपर तथा इस रत्नप्रभा पृथिवी से सम्मभूमिभाग से जो रुचकप्रदेश से उपलक्षित है उसले ७९० योजन ऊपर जाने पर ११० योजनप्रमाण ऊचाईरूप क्षेत्र में तिरछे ज्यातिष्क देवों के असंख्यात. लाख विमानाचान कहे गये है ऐसा मेरा तथा रा भूतकाल के सर्व देवा परिवसंति' च्याति व यां रहे हैं? प्रश्न उत्तरमा प्रभुश्री ४३ छ है 'उप्पि दीपसमुदाणं इमीसे रयणप्पभाए पुढवीर बहुसमरम णिज्जाओ भूमिभागाओ सत्ताम उए जोयगसए उड्ढ उत्पतित्ता दसुत्तरसया जोयगव हल्ठेणं, तत्थ ण' जोइसियाणं देवाण तिरियमसंखेम्जा जोइसिय विमाणावाससयसहस्सा भवतीतिमक्खायं 3 गौतम ! द्वीप भने समुद्रानी 6५२ तथा આ રત્નપ્રભા પૃથ્વીના સમભૂમિભાગથી કે જે રૂચક પ્રદેશથી જણાય છે. તેનાથી ૭૦ સાત નવું જન જાય ત્યારે ૧૧૦ એકસે દસ એજન પ્રમા શુના ઉંચાઈવાળા ક્ષેત્રમાં તીચ્છ જ્યોતિષ્ક દેના અસંખ્યાત લાખ વિમાનાવાસે કહેવામાં આવેલા છે. એ પ્રમાણે મારું તથા અન્ય ભૂતકાળના સર્વ

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