Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 883
________________ प्रमेययोतिका टीका प्र.३ ३.३ सू.५३ वनषण्डादिकवर्णनम् 'तस्थ णं जे ते किण्हा तणाय मणीय' तत्र-तेषां पश्चवर्णा तृणानां मणीनां च मध्ये खलु यानि तान कृष्णानि तृणानि ये ते कृष्णा मणयश्च 'तेसिं णं अयं एयारवे वण्णावासे पन्नत्ते' तेषां कृष्णवर्णोपेतानां तृणानां मणीनां च खल किम् अयम्-अनन्तरमुद्दिश्यमान एतावद्रपोऽनन्तरमेव वक्ष्यमाणस्वरूपो वर्णावासो-वर्णनिवेशः प्रज्ञप्त:-कथितः ? तदेव दर्शयति-से जहा णामए' तथानामकम्-'जीमूतेइ वा जीमूत इति वा, जीमूतो मेघः स पी प्रारम्भसमये जलभृतो ज्ञातव्य स्तत्सशस्तृणानां मणीनां च कृष्णवर्णः, तादृशमेघस्यैवातिकालिमसंभवात्, इति शब्द उपमाभूतवस्तूनामपरिसमाप्तियोतका वा शब्द उपमानान्तरापेक्षया समुच्चये, एवमेव सर्वत्रैव इति शब्द वा शब्दो द्रष्टव्याविति ।। 'अंजणेइ वा' अञ्जनमिति बा, तत्र अञ्जनं सौवोराञ्जनं रत्नविशेषो वा 'खंगणेइ वा' खञ्जनमिति वा खञ्जनं दीपमल्लिकामलः, 'कज्जलेइ वा कजल मिति वा कज्जलं दीपशिखा पतितम् 'मसीति वा' मपीति वा, तदेव कज्जलं हुआ है इन पांचों वर्गों का पृथक पृथक वर्णन करते हैं उनमें गौतम स्वामी प्रथम कालवर्ण के विषय में पूछते है हे भगवन् 'तत्थ णं जे ते कण्हा तणा मणीय' इन पांचवणाले तृणों और मणियों के बीच में जो कृष्णवर्णवाले तृण और मणियां है 'तेसिणं अयं एयारूवे क्षपणावासे पण्णत्ते' उनका वर्णावास वर्णन्यास इस प्रकार का होता है क्या ? 'से जहानामए जीमूतह वा' जैसा काला वर्षा के प्रारम समय में जल से भरा हुआ बादल होता है 'अंजणेतिवा' जैसा काला सौवीराजन या इस नामका रत्न विशेष होता है 'खंजणेहवा' जैमा काला-खंजनदीपमल्लिका मैल होता है 'कज लेइछा' जैसा फाला काजल होता हैदीप शिखा से गिरी हुई मधी होती है अर्थात् काजल को किसी ગ્રહણ કરાયેલ છે હવે એ પાંચે વર્ગોનું અલગ અલગ વર્ણન કરે છે તેમાં શ્રી ગૌતમસ્વામી પહેલાં કાળાં વર્ણના સંબંધમાં શ્રી મહાવીર પ્રભુને પૂછે છે કે हे भगवन 'तत्य गं जे ते कण्हा तणा मणीया से पन्य पात। मन माणुयामा २४०५ वा तय मने भणियो, 'तेसि णं अय एयारवे वण्णावासे पण्णत्ते' तो पर्यावास-पन्यास मावी शते हाय छ ? 'से जहा नामए जोमूतेइवा' वर्षान पारस समयमा reी सरेसा पाणावा ॥ हाय छे'अंजणेतिवा' २ण सीवान मथ! मे नानुन विशेष य छे, 'ख जणेवा मन हीवानी मेख-मश २ को हाय छे. 'कज्ज. જે રૂવા” કાજળ અર્થાત દીવામાંથી ખરેલી મશ જેવું કાળું હોય છે, અથવા કાજળને તાંબાના વાસણુમાં એકઠું કરી જ્યારે તેને કોઈ નિગ્ધ પદાર્થની मी० १०८

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