Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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च्छानां स्वल्परा अनुद्धिप्राप्ता लादि, एवं जहा पातव्यम्
प्रमैयद्योतिका टीका प्र.३ उ.३ सू.४४ हयकर्णद्वीपनिरूपणम् भरत, पञ्चरवतः पञ्चमहाविदेहभेदात् पञ्चदशमकारकाः कर्मभूमकमनुष्या भवन्तीति । 'ते समासओ दुविहा पन्नत्ता' ते कर्मभूयका मनुष्याः समासतः-संक्षेपेण द्विविधाः-द्वि प्रकारकाः प्रज्ञप्ताः-कथिता, द्वैविध्यं दर्शयति-तं जहा' इत्यादि, 'तं जहा' तद्यथा-'पायरिया मिलेच्छ।' आर्याः स्लेच्छाश्व, तत्र म्ले. च्छानां स्वल्पत्वात्प्रथमं म्लेच्छा वर्ण्यन्ते-ठलेच्छाः शकयवनादिभेदैरनेकविधाः। आर्या ऋद्धिमाप्ता अनृद्धिप्राप्ता इहि द्विविधाः । एते द्वये भेदानुभेदैर्वहुविधा भवन्ति, तत्पज्ञापनातिदेशेनाह ‘एवं जहा' इत्यादि, 'एवं जहा पण्णवणापदे जाव से तं आरिया' एवं यथा यज्ञापनाया: प्रथमे पदे कथितं तथैवात्रापि ज्ञातव्यम् फियत्पर्यन्तं प्रज्ञापनाप्रकरणं ज्ञातव्यं तमाह-'जाव' इत्यादि, 'जाव से तं आरिया' यावत्ते एते आर्याः, इति पर्यन्तमिति । 'से तं गमवकंतिया' ते एते गर्भव्युस्क्रान्तिका जीवा निरूपिताः, 'से तं मणुस्सा' ते एते उपर्युक्तक्रमेण मनुष्या स्त्रिविधा अपि निरूपिता इति ।।लू० ४४॥ क्षेत्रों के पांच ऐरवत क्षेत्रों के और पांच विदेहों के सब मिलकर पन्द्रह कर्मभूमियों की अपेक्षा मनुष्य पन्द्रह प्रकार के हो जाते है। ते समासओ दुविहा पन्नत्ता' थे कर्मभूमिक मनुष्य संक्षेप से दो प्रकार के होते है 'तं जहा' जैले 'आरिया मिलेच्छा' आर्य और म्लेच्छ, म्लेच्छ शक सूत आदि है । 'एवं जहा पण्णवणापदे जाब खेत आरिया' प्रज्ञापना के प्रथम पद में आर्य प्रकरण तक इल सम्बन्ध में कथन किया है अतः वैसा ही बहस कथन यहां पर भी आर्यों के सम्बन्ध में कर लेना चाहिये 'सेत समक्क्रलिया' इस प्रकार से गर्भज जीवों का यहां तक निरूपण हो जाता है। 'खेतं पण्णुस्ता' इन के निरूपण हो जाने पर तीन प्रकारके मनुष्योका निरूपण भी समाप्त हो जाता है।४४॥ महाविदेहेहि' पाय प्रश्न मरतक्षेत्रना पाय मारना भरपतक्षेत्रना मने पाय પ્રકારના મહાવિદેહ ક્ષેત્રના એ પ્રમાણે બધા મળિને પંઘર પ્રકારની ४म भूमिना भनुध्यो ५५ ५२ प्रान! 2 mय छे. 'ते समास ओ दुविहा पन्नत्ता' मा भभूमिना मनुष्यो सपथा में प्रा२ना थाय छे. 'त' जहा" नभई 'आरिया मिलेच्छा' मा भने २७, म्होछ श४, सूत विगेरे छे. 'एवं जहा पण्णवणापदे जान से तं आरिया' प्रज्ञापन सूत्रना पड़ता પ્રજ્ઞાપના પદમાં આર્ય પ્રકરણ સુધી આ વિષયનું કથન કરેલ છે. તે જ પ્રમાણે ते सघणु ४थन सडियां यन्मयाना समां सभ७ : 'से तगम्भ वक्क तिया' मा शत माटमा सुधी ४ वा नि३५ य नय छे. 'से त्त मणुस्सा' यस वर्नु नि३५ वाथी त्रय ना मनुष्य। न नि३५] थ य छे. ॥ ४४ ॥