Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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जीवामिगम 'पगइ उपसंता' पकत्युरशान्ताः-स्वभावत एव शान्ताः 'पगह पयणुकोहमाणमा. यालोमा' प्रकृत्यैव प्रतनु कोधमानमायालोमा:-स्वभावत एव अतिमन्दीभूतकवाय चतुष्ट पवन्त इत्यर्थः, 'खिउमदवसंयण्णः' मृदुमादवसंपन्नाः, मृदु-मनोज्ञ परिणाम सुवाई यन्माद तेन सपन्नाः 'अल्लोणा' आठीना:-आ-समन्तात् सर्वासु किय सु लीना गुप्ता नील रण चेष्टाकारिण इति भावः । 'मदगा' भद्रका:-सकल. तरक्षेत्र कल्याण मागिन:, 'विणीया' विनीताः-वृत्पुरुषविनयकरणशीलाः, 'अप्पेछ।" अल्पेच्छाः अल्पशब्दोऽत्रा भाववाचकः तेन अल्पेच्छा इति इच्छावर्जिनाः मणिकनकादि प्रतिबन्धरहिता, अत एव 'असंनिहिसंचया' असंनिधिसंच गा, न विद्यते सन्निधिरूपः संचयः कस्यापि वस्तु जातस्य संग्रहो येषां ते तथा अन एव 'अचंड' अवण्डा' अङ्कग इत्यर्थः विडिमंतरपरिवसणा' विडिमान्तर परिवसनाः विडिमान्तरेषु प्रसादायाकृतिपु शाखान्तरेषु परिवसनम् थाकारमावासो येषां ते तया, 'जहिच्छिय कामकामिणो य' यथेप्सित कामकामिन:- यथेप्सितान् मनोवांछितान् कामान् शब्दादीन् कामयन्ते इत्येवंशीला: 'ते मणुयगणा पण्णता समणाउसो' पूर्वोक्तलक्षणयुक्ता स्ते एकोरुक वास्तव्या कोह माणमायालोभा, मिउमद्दवसंपन्न, अल्लीणा भद्दगा, विणीता, अप्पेच्छा,' ये मनुष्य स्वभावतःभद्र परिणाभी होते हैं स्वभावतः ही विनयशील होते हैं, स्वभाव से ही शान्त होते हैं, स्वभाव से ही ये अल्प कषाय वाले अल्प क्रोध, मान, माया और लोभ-वाले होते हैं स्वभाव से ही ये मृदु-मार्दव सम्पन्न होते हैं. स्वभाव से ही ये विनय
आदि मद्गुगों वाले होते है इस प्रकार स्वभावतः भद्रक और विनीत भाव से युक्त हुए ये अला इच्छा वाले होते हैं 'असंनिहि संचया' इसी कारण ये कोई वस्तु का संचय संग्रह करने वाले नहीं होते हैं और 'अचंडा' ये क्रूर परिणामों वाले नहीं होते हैं। 'विडिमंतर परिव सणा' वृक्षा की शाखाओं के मध्य में रहते हैं 'जहिच्छिय कामगा. उपस ता, पगति पयणु कोहमाण माया लोभा, मिउमद्दवस पन्ना, अल्लीणा भद्दगा, विणीता, अप्पेच्छा' से मनुष्ये। माथी म पनियाभवाणा डाय छे. साव થી જ વિનયશીલ હોય છે સ્વભાવથીજ અ૫ કષાયવાળા, અ૯૫ ક્રોધ, માન, માયા, અને લેભ વાળા હોય છે. તેઓ સ્વભાવથીજ મૃદુ માર્દવ સંપન્ન હોય છે. એ જ પ્રમાણે સ્વભાવથી ભદ્રક અને વિનીત ભાવથી ચુકત થયેલા तमा अ६५ ४२७ डाय है. 'असनि हि सचिया' मेरी हो । परतुनी सड ४२वा नथी. मने 'अचंडा' । ३२ परिणामवाण होता नथी. 'विडिम'तर परिवसणा' वृक्षानी शामासानी मध्यमा २७ छ 'जहिच्छिय कामगामिणो य ते मणुयगणा पण्णत्ता समणाउसो' तया से मनुष्या पानानी