Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रमेयधोतिका ठीका प्र.३ उ. ३ सू०३६ एकोरुकद्वीप स्थितद्रुमगणवर्णनम्
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रूपाभिः विभक्तिभिः - विच्छित्तिभिः कलिताः - युक्ताः 'भवणविहीवहुविकप्पा' भवनविधि बहुविकल्पाः - मवनविधिना अनेकप्रकाराः, 'तहेच ते गेहागारा वि दुमगणा' तथैव प्राकारादिवदेव ते गेहाकारा अपि द्रुमगणाः 'अणेग बहुविवि-वीससापरिणयाए' अनेक बहुविविधविस्वासापरिणतेन भवन विधिना, कथं भूतेन भवनविधिना तत्राह - 'सुहारुहाए सुहोत्तराए' सुखारोहणेन सुखोत्तारेण, सुखेनारोहणमूर्ध्वगमनं यस्य तेन सुखेन अधस्तादवतरणं यस्य स तथा तेन, 'सुइनिकखandre' सुखनिष्क्रमण प्रवेशेन सुखेन - अनायासेन निष्क्रमणं निर्गमः प्रवेशच यत्र स तथा तेन 'दद्दरसोपानपतिकलियाए' दर्दरसोपानपङ्क्ति कलितेन दर्दरा - घनीभूता सोपानपङ्क्तिस्तया कलितेन युक्तेन 'पइरिकाए' प्रतिरिते गेहागारा वि दुमगण।' इसी प्रकार से वे गृहाकार नाम वाले कल्पवृक्ष भी 'अणेग बहु विविधवीससा परिणयाए सुहारूहणे, सुहोतराए सुह निक्खमणप्पवेसाए, दद्दर सोपाण पंति कलियाए परिक्काए सुह विहाराए, मणोऽणुकूलाए, भवग बिहीए उववेघा' अनेक प्रकार की बहुन सी स्वाभाविक भवन विधि से भवनों की रचना रूप प्रकार से कि जिन भवनों के ऊपर चढने में और नीचे उतर ने में किसी भी प्रकार का परिश्रम - खेद - थकावट नहीं होता है सुख पूर्वक जिनपर
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ढा और उत्तरा जा सकता है-आनन्द के साथ जिनके भीतर जाना होता है और आनन्द के साथ ही जिनसे बाहर निकलना होता हैतथा - जिनकी सोपान पड़ियां दर्दरी घनीभूत पाम पाम में होती है, और जिसमें विशालता को लेकर बिहार सुख प्रद ही होता है, एवं जो मनोनुकूल होती है उस प्रकार की भवनविधियों से युक्त होते हैं 'कुम० जाव चिति इन पदो का अर्थ पूर्वोक्त जैसा ही है तात्पर्य
म्यवृक्षेो यस्यु 'अणेग वहुविविध वीससा परिणयाए सुहारुहणे, सुहोत्तराए सुनिक्खमण पवेसाए, दद्दरखोपाण पतिकलियाए पइरिनस्वाए सुहविहाराए, मणोऽणु कलाप, भवणविहीर उववेया' भने प्रहारनी घाली सेवी स्वाभावि भवनविधिथी અર્થાત્ ભવનાની રચના રૂપ પ્રકારથી એટલે કે જે ભવનેાની ઉપર ચડવામાં અને નીચે ઉતરવામાં કાઈ પણ પ્રકારના પરિશ્રમ-ખેદ-થાક લાગતા નથી અને જેના પર સુખ પૂર્વક ચડાય ઉતરાય છે. તથા આનંદ પૂર્ણાંક જેની અંદર જઈ શકાય છે, અને આનદ પૂર્વક જેની બહાર નીકળી શકાય છે. તથા જેના પગથિયા ઘનીભૂત પાસે પાંસે હૈાય છે. અને જેના વિશાળ પાને લઇને જવા આવ વાસ્તુ' સુખદ થાય છે. અને જે મનને અનુકૂલ હોય છે. એવા પ્રકારની ભવન विधियोथी युक्त होय छे. 'कुसविकुस जाव चिट्ठति' आा पहोना अर्थ पढेतां
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