Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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जीवामिगमस्त्र ___अथ के ते जरायुजाः, जरायुनानां कियन्तो भेदा इति प्रश्ना, भगवानाह'गोयमा' हे गौतम ! 'जराउया तिविड़ा पानता' जरायुजास्त्रिविधा:-भिप्रकारका: प्रज्ञप्ता:-कथिता इति । 'तं जहा' तथथा-'इस्तीपुरिसा णपुंमगा' स्त्रियः पुरुषा नपुसकाश्च । 'तत्थ ण जे ते संच्छिमा से सब्वे णपुंसगा एद' तत्र खलु ये से संम् च्छिमास्ते सर्वेऽपि लघुसका एव भवन्ति नतु त्रिवः पुरुषावेति नियमत स्रोपां नपुं. सकवेदोक्ष्यादिति । 'तेसिणं मते ! जीवाणकाइ लेस्सामी पन्नत्ताभो' तेषां खल भदन्त ! चतुष्पदस्थळचरजीवानां कतिलेश्याः-झियत्संख्यकाः लेवाः प्रज्ञप्ता:करिता इनि पाए: उत्तरपति-'सेसं जहा परवीणं' शेष यथा पक्षिणाम्, किया गया है। पोलज भेट हलके अनर्गत हो ही जाता है इसलिये यहां उल्लकी विवक्षा नहीं की है। इसीलिये यहां से किं तं जराउया' जरायुजों के कितने प्रकार हैं ऐल्ला प्रश्न गौतम ने किया है ! उत्तर में प्रभु कहते हैं-जहाउपातिविता परता' जरायुज तीन प्रकार के कहे गये हैं 'तं जहा' जम्ने-'हस्थी, पुरिसा, णपुलगा' खी, पुरुष
और नपुसक. जरायुज था तोश्री वेद बाले होते हैं या पुरुष वेद वाले होते हैं या नपुंसक वेदवाले होते है-इस तरह से जरायुज जीव तीन प्रकार के कहे गये हैं। 'तस्थ पंजे से समुच्छिमा ते सव्वे णपुंसगा एव' उनमें जो संमूछिय जीव होते हैं वे नियम से नपुंसक ही होते स्त्रीवेद वाले या पुरुषवेद वाले नहीं होते है। तेसि गं भंते ! जीवाणं का लेस्लाओ पनत्तानो' हे अदन्त ! उन चतुष्पद स्थलचर जीवों के कितनी लेश्याएं होती हैं ? उत्तर में प्रभु कहते हैं-'सं जहा पक्खी છે. પિતજ રૂપી ભેટ તેની અંતર્ગત થઈ જ જાય છે. તેથી તેની વિવક્ષા અહીં ४३६ नथी. तथा महियां से किं त जरायुउया' ०४२युलना मा २४क्षा છે? આ પ્રમાણેને પ્રશ્ન શ્રીતમસ્વામીએ પૂછેલ છે આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં असुश्री 'जराउया तिविहा पण्णत्ता' हे गौतम नरायु प प्रारना हाय छे. 'त' जहा' म 'इत्थी, पुरिला, णपुसगा' श्री, धु३५, अन न જરાયુજ કાંતે સ્ત્રીવેદ વાળા હોય છે, અથવા પુરૂષદવાળા હોય છે, અથવા નપુંસક વેદવાળા હોય છે. આ રીતે જરાયુજ જીવે ત્રણ પ્રકારના કહેવામાં
माया छ, 'तत्थ णं जे समुच्छिमा से सव्वे णपुसगा एव' तभी 71 સંમઈિમ જ હોય છે, તેઓ નિયમથી નપુંસક જ હોય છે. સ્ત્રી વેદવળા अथपा ३५वेवाण नथी 'सिणं भरे जीवाणं कई लेस्सायो पण्णत्ताओं' હે ભગવન્તે ચતુષ્પદ સ્થલચર જીને કેટલી લે શ્યાઓ હોય છે ? આ प्रश्न उत्तरमा प्रमुश्री गौतमस्वामीन ४ छ 'सेस जहा पक्खीण' 8