Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रमेयोतिका टीका प्र.३ उ.३ ७.३० समैदपृथिव्याः स्थित्यादिनिरूपणम् ४७१ 'पडप्पनवणफकाइयाणं भंते' प्रत्युत्पन्नबनस्पतिकायिका तत्काल समुत्पद्यमाना वनस्पतिकायिकाः खलु खलु भदन्त ! 'केवइय-कालस निल्लेबा सिया' कियता कालेन निर्लेपाः स्युः १ इति प्रश्नः, भगवानाह-'गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम ! 'एडुप्पन्नवणप्फइकाइया' प्रत्युत्पन्नास्तस्कालं समुल्षयमाना वनस्पतिकायिकाः, 'जहन्नपदे अपदा' जघन्यपदे अपदाः यता कालेनापयिन्ते इत्येताशपदरहिता एव भवन्ति । वनस्पतिकायिकानामनन्तानन्तत्वादिति । 'उको. सपदे अपया' उत्कृष्टपदे अपदाः, इयता कालेन अपहियन्ते इत्येतादृशपदहिता, जीवों की तरह ही असंख्यात उत्सपिणियां और असंख्यात ही अच सपिणियाँ समाप्त हो जावें तब जाकर वे पूरे अपहन किये जासकते हैं। . 'पडप्पन्नवणफह काइयाणं भंते ! केवाय कालस्त निल्लेश लिया' हे भदन्त ! वनस्पति कायिक जीव जो अभिनव वनस्पति कायिक जीव रूप से अमुक किसी विवक्षित काल में कम से कल उत्पन्न हुए हों और अधिक से अधिक उत्पन्न हुए हो यदि उन्हें एक-एक समय में अपहत किया जावे तो कितने काल में वे अपहृत हो पावें ? इसके उत्तर में प्रभु श्री कहते हैं-'गोयमा ! पडुप्पन्नवणप्फ काइका जहण्ण पदे अपया उक्कोसपदे अपया' हे गौतम! वनस्पतिकाधिश जीव जघन्य से और उत्कृष्ट से अनुक विवक्षित-काल में इतने अधिक उत्प. न्न होते हैं कि 'वे असंख्वात उत्सपिणियों में और असंख्यात अवमपि णियों में अपहृत हो पावें' ऐमा वहां नहीं कहा जा सकता है इसका तात्पर्य यही है कि वनस्पति कायिक जीव अमुभ-विवक्षित-काल में અસંખ્યાત ઉત્સર્પિણી અને અસંખ્યાત જ અવસર્પિણી પૂરી થઈ જાય ત્યારે તેઓ પૂરેપૂરા બહાર કહાડી શકાય છે.
___ 'पडुगन्नवणप्फकाइयाण भते! केवइय काउस्स निल्लेवा मिया' है ભગવાન ! વનસપતિ કયિક જીવ જે અભિનવ વનસ્પતિ કાયિક પણાથી કઈ અમુક વિવક્ષિત કાળમાં ઓછામાં ઓછા ઉત્પન્ન થયા હોય અને વધારેમાં વધારે ઉત્પન્ન થયા હોય તેઓને જે એક એક સમયમાં બહાર કહાડવામાં આવે, તે તેઓ બધા કેટલા સમયમાં બહાર કહાડી શકાય ? આ પ્રશ્નના उत्तरमा प्रभुश्री गौतमस्वामीन ४३ छ गोयमा । पडुप्पन्न वण फकाइया जहण्णपो अपया, उक्कोसपदे अपया' गोतम ! वनस्पति थि: । જધયથી અને ઉત્કૃષ્ટથી અમુક વિવક્ષિત કાળમાં એટલા બધા વધારે ઉત્પન્ન થાય છે. કે તેઓ અસંખ્યાત ઉત્સપિમાં અને અસંખ્યાત અવલપિનીમાં રડાર કહાડી શકાય એ પ્રમાણે કહી શકાતું નથી. આ કથનનું તાત્પર્ય