Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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जीवाभिगमध्ये क्रियते। अद प्रश्नत्रयं ज्ञविषकं मन्दबुद्धिविनेयजनबोधार्य गौतमेन कृतमिति नावास्य प्रश्नत्रयस्य नरर्थवयामिति । कथमेतज्ज्ञायते यदेवत् प्रश्न त्रयं जविषयकम् ? इति चेत् स्वायबोधाय तवाग्रे प्रश्नान्तरोपन्यासात् । __अथ विस्तारविपये प्रश्न माह-तथाहि-'वित्थरेणं' विस्तरेण विष्फम्मेण 'तल्ला विसेसहीणा संखेनगुणहीणा' तुल्या-महशी विशेपहीना संख्येयगुणहीना चा भवतीति प्रश्नः । भगवानाह 'गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम ! 'इमा णं रयणप्पया पुढवी' इयं खलु रत्नममा पृथिवी 'दोच्चं पुर्वि पणिहाय' द्वितीयां शर्कराममा पृथिवीं प्रणिधाय-माश्रित्य तदपेक्षयेत्यर्थः । 'वाहल्लेणे' विलीन शिष्य की शंका निवारण के लिये पूछा जाय । और जो अपने नहीं जानते हुए जिज्ञासा बुद्धि से पूछा जाय वह अज्ञ प्रश्न कहा जाता है। यहां जो गौतम स्वामी ने प्रश्न किया है वह मन्द बुद्धि विनेय शिष्य के जानने के लिये किया गया होने से यह ज्ञ प्रश्न है इसलिये यह निरर्थक नहीं है । यह कैसे जाना जाय कि यह ज्ञ प्रश्न है ? इसका उत्तर यह है कि-अपने जानने के लिये यहीं पर भागे दूसरा प्रश्न विस्तार जानने के लिये पूछा जा रहा है इससे सिद्ध होता है कि यह ज्ञ प्रश्न है। अप विस्तार के विषय में करते है- 'बियरेणं किं तुल्ला, विसेलहीणा, संखेज्ज गुण हीणा' तथा-विस्तार की अपेक्षा यह उस से तुल्य है ? या विशेष हीन है ? या संख्धान गुणहीन ई ? प्रभु इस प्रश्न के उत्तर में कहते हैं-गोयना' इमाम स्थापभा पुढवी 'हे गौतम ! यह रत्नप्रभा पृथिवी 'दोच्च पुढदि पणिहाय' वितीय पृथिवी की अपेक्षा આવે. અને જે પિતે ન જાણવા થી જીજ્ઞાસા-જાણવાની ઈચ્છાથી પૂછવામાં આવે તે “અજ્ઞ' પ્રશ્ન કહેવાય છે. અહિયાં ગૌતમસ્વામીએ જે પ્રશ્ન પૂછેલ છે, તે મંદ બુદ્ધિ વિનય શીલ શિષ્યની સમજ માટે પૂછેલ હોવાથી આ પ્રશ્ન '' प्रश्न छे. तथा मा ४थन निरय नथी.
એ કેવી રીતે સમજી શકાય કે એ “જ્ઞ પ્રશ્ન છે? આ પ્રશ્નને ઉત્તર એ છે કે પોતાને સમજવા માટે અહિંયાં જ આગળ બીજો પ્રશ્ન વિસ્તારના સંબંધમાં પૂછવામાં આવેલ છે. તેથી નિશ્ચિત થાય છે કે આ “સ” પ્રશ્ન છે
6 विस्तारना समयमा वामां आवे छे. 'वित्थरेण कितुल्ला ! विसेसहीणा, स खेज्जगुणहीणा' तथा विस्तानी अपेक्षाथी से तनी मम२ છે ? અથવા વિશેષ હીન છે ? કે સંખ્યાત ગુણથી રહિત છે ? આ પ્રશ્નના उत्तरमा प्रभु के छ है 'गोयमा ! इमाणं रयणप्पभा पुदयी' गौतम ! मा २५मा पृथ्वी 'दोच्च पुढवि पणिहाय' भी पृथ्वी १२ता 'वाहल्लेणं णो तुल्ला'
‘’ પ્રશ્ન છે ?
પૂછવામાં આવી જા માટે અહિ