Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रमेयद्योतिको टीका प्र.३ उ.२ ६.१७ नारकजीवोत्पातनिरूपणेम् धणूई अड्राइज्जायो रयणीओ' उत्कर्षेण पञ्चदश धनूंषि सा द्वे रत्नी पञ्चदशधनु द्वौं इस्तौ एका वितस्तिरेतावत्पमाणा भवतीति । 'दोच्चाए' द्वितीयायां शर्कराप्रभा पृथिव्यां ये नारकास्तेषां शरीरावगाहना 'भवधारणिज्जा जहन्नओ अंगुलासंखेज्जइमार्ग' या भवधारणीया सा जघन्यतो अंगुलासंख्येयभागप्रमाणा भवति 'उक्कोसेणं पण्णरसधण्इं अडाइजाओ रयणीओ' उत्कर्षेण पञ्चदशधषि साढ़े द्वे रत्नी, 'उत्तर वेउन्चिया जहन्नेण अंगुलस्स संखेज्जइमागं' उत्तस्वैक्रियाशरीरावगाहना जघन्येनागुलस्य संख्येयभागप्रमाणा भवति, 'उक्कोसेण एक्कतीसंधणूई एक्का रयणी' उत्कग एकत्रिंशद्धनूंषि एका रनिः,एतावत्यमाणा भवतीति । तच्चाए' तृतीयस्यां वालुकाममा पृथिव्यां ये नारकास्तेषां शरीरावगाहना-भवधारणिज्जा एकतीस धणूई एक्का रयणी' अवधारणीया शरीरावगाहना जघन्येनाङ्गलासंख्येयभागप्रमाणाः उत्कर्षेणेकत्रिशद् धनपि एका रनिः 'उत्तरवेउन्धिया बासद्धि धणूई दोन्नि रयणीयो' उत्तरक्रिया शरीरावगाहना जघ. उत्कृष्ट से 'पनरसवणूई अड्डाहज्जाओ रयणीओ' बह पन्द्रह धनुष ढाई हाथ प्रमाण 'दोच्चाए' द्वितीय शर्कराममा पृथिची में जो नारक है उनकी भवधारणीयशरीरावगाहना जघन्य से तो अंगुल के असंख्यात भाग रूप हैं और उत्कृष्ट से 'पण्णरलधणूई अड्डाइज्जाओ रचणीओ' पन्द्रह धनुष ढाई हाथ की है. तथा-यहां जो उन्तरक्रिया रूप शरीरा वगाहना है वह 'जहन्ने' जघन्य से तो अंगुल के संख्यात वे भाग है और 'उक्कोसेणं' उस्कृष्ट ले 'एकतीसं धणूई एका स्थणी' एकतीस धनुष एक हाथ है 'तच्चाए' तृतीय पृथिवी जो बालुकायमा है उसमें भारकों की भषधारणीय शरीरावगाहना बह जघन्य ले तो अंगुल के असंख्यात वें भाग रूप है और उत्कृष्ट से इकलीस धनुष एक हाथ धणूई अड्ढाइज्जाओ रयणीओ' ५४२ धनुष गढी ५ अमानी छ. 'दोच्चाए' भी श४२मा पृथ्वीमा २ ना२३॥ ॐ, तनी अqधारणीय शरी. વગાહના જઘન્યથી તે આંગળના અસંખ્યાતમા ભાગ રૂપ છે. અને ઉત્કૃષ્ટથી 'पण्णरस धणूई अड्ढाइजाओ रयणीओ' ५४२ धनुष मने मढी सायनी छ. तथा रे उत्तर वैयि नामनी शरीराबाईना छ, ते 'जहन्नेणं' न्यथा तो मांना सातमi Hu ३५ छ, भने 'उक्कोसेण' थी 'एक्कतीस धणूई एक का रयगी' मेत्रीस धनुष भने मे लायनी छे. 'तच्चाए' श्रील વાલુકા પ્રભા નામની જે પૃથ્વી છે, તેમાં નારકની ભવધારણીય શરીરવગાહ ના જઘન્યથી તે આગળના અસંખ્યાતમા ભાગ રૂપે છે. અને ઉત્કૃષ્ટથી એક