Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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जीयामिगमने 'मुवनागराणि वा' सुवर्णाकरा इति वा 'हिरण्णागराणि वा' हिरण्याकरा इति वा, भग्निस्थानानि निरूप्य अग्निस्वरूपं निरूपयति-'कुंभारागणीड वा' कुम्भका. राग्निरिति वा कुम्भकारस्य माण्डपाकाग्नि 'मुमागणीइ या' मृपारिनरिति वा 'मूषा' इति धातुगालनपात्रं तद्गताग्नि दयामणीइ वा पुष्टकाग्निरिति वाइष्टकापाकाग्निवा 'कवेल्लुयागणी वा' कवेल्लुकारिनरिति श-कवेल्लुकपाकाग्निर्वा 'लोहांवरीसेइ वा लोहकाराम्बरीप इति वा सम्परीपः कोष्ठका 'भट्टी' इति प्रसिद्धः 'जंतवाडचुल्लीइवा' यन्त्र पाटक चुल्ही इतिश यात्र-शुपीडनयन्त्रम् तत्पधाना पाटकः यत्र चुल्ही यत्र इक्षुरसः पच्यते 'गोलियामिछागणीड वा' गौण्डिकालिंछाग्निरिति वा-गुडपाक स्थानानि सोडिया लिंछागणी वा शौण्डिकलिंछाग्निरिति वा, मधपाकस्थानाग्नि की 'लिडिया लिंछागणीइ वा' लिण्डिकालिंछाग्निरिति वा अजापुरिषस्थानगताग्निी 'डारणोड सन्डाग्निरिति वा नड:-अन्त विवर न्डशः तम्याग्निी 'तिसारणीइ का लिाग्निसोने को गलाने के भद्दे, अग्नि के स्थानों को कह पार अब अग्नि का स्वरूप कहते हैं 'कुभागाराणिवा 'कुंभ-वर्तन-के भट्टे की अग्नि 'मुलागणी इवा' 'मृषा'-धातु गलाने का पान उलकी अग्नि 'टयागणीइवा' ईटों को पकाने वाले भेटेकी अग्नि 'कवेल्लया नीचा' 'कवे. ल्लु-खपरा को पकाने के आवा की अग्नि 'लोहायरीलेइया लोरे को गलाने वाले लुहार के भट्टी की अग्नि' 'जंतवाड चुल्लीहा ' ईक्षु-गन्ने के-रसको पकाने की अग्नि 'गोलिया लिंछागणी या गुड पकाने के स्थान की अग्नि 'सोडिया लिंछागणीइवा 'शौडिक अग्नि मद्य पक्षाने की अग्नि लिंडिया लिंछागणीइवा' चकरी की लिंडी की अग्नि' णडा. गणीइवा 'नडाग्नि नडवंश की अग्नि तिलागणीइवा तिल की अग्नि ગાળવાની ભઠી, આ રીતે અગ્નિને સ્થાને કહીને હવે અગ્નિના સ્વરૂપનું કથન अरे छे. 'कुंभागाराणि वा' स. मेट है वासाने ५४.५वानी महीन भान 'मुमागणीइ वा' भूषा मेट घातुन सागवान महान मनि 'इट्टियागणीइवा' टीने ५४वा साना मनि 'कवेल्लुयागणीइ वा' ४वेषु नजीया ५४वानी महीन पनि 'लोहांवरीसेइ वा al'ने भाजपा साना सानो भनि 'जतवाल चुल्लीइ वा' क्षु सडीना २सने ५४१वानी मन 'गोलिया लिंछागणीइ का' गण मना वधानी सटहीन भनिन, 'सोडिथा लिछागणोड वा' dist माग्न मर्थात भय मनापानी पीना अनि 'लिडिया लिचगणीइ वा' मरीनी साहाना भान 'णडागणीइ वा' ननि अर्थात शनी माग्न पतिला
अग्नि 'लोहायरीया
के रसको पलहार के भट्टी की