Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रमेयद्योतिका टीका प्र:३ उ.२ .१९ नाएकाणामुच्यासादिनिरूपणम् २६१ ये नीललेश्याः धूमपभायां नीललेश्या नारका अधिकाः सन्ति ते थोवतरगा जे कण्हलेस्सा' ते स्तोकतराः सन्ति ये कृष्णलेश्याः भावना प्राग्वदेव, 'तमाए पुच्छा' तमायां पृच्छा हे भदन्त ! तमःप्रमानारकाणां कतिलेश्या भवन्तीति पृच्छया संगृह्यते प्रश्नः, अगवानाइ-'गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम ! 'एक्का किण्हलेस्सा' एका कृष्णलेश्या भवति तमाममा तारकाणाम, साच धूमप्रमा पृथिवीगत कृष्णलेश्यापेक्षया अदिशुद्धतरा सवति 'अहे. सत्तमाए एका परमकिण्हलेस्सा' हे सदन्त अब सप्तमी नारकाणां कतिलेश्या भवन्ति हे गौतम ! अध:सप्तमी नारकाणामेंका परम कृष्णलेश्या भवति तदुक्तम्
'काऊ दोन तइयाए मीसिया नीलिया चउत्थीए । पंचमियाए मीसा कण्हा तत्तो परम कण्हा ॥१॥ कापोती द्वयो स्तृतीयस्यां मिश्रा नीला च चतुर्थ्याम् ।
पञ्चम्या मिश्रा कृष्णा ततः परम कृष्णा ॥१॥ इतिच्छाया । लेश्या और नीललेश्या 'ले मातरक्षा जे नीललेला हल से धूमप्रभा पृथिवी लीललेश्वो बाले नारक अधिक हैं और ते थोवतरका जे कण्हलेस्ला 'कृष्ण लेश्या बोले जीव काल है। भावना पूर्ववत् समझ लेना चाहिये । 'तमाए पुच्छ।' 'हे भदन्त ! तमामा पृथिवी के नैरयिकों के कितनी लेश्याएं होती हैं ? 'गोधमा : एक्का झिण्ह लेस्ला' एक कृष्ण लेश्याही होती है और यह कृष्णलेशा धूमप्रभा गत कृष्णलेश्या की अपे. क्षा अविशुद्धतर होती है। 'अहे सताए एकका परम किण्ह लेस्ला' हे भदन्त ! अधः लप्तमी पृथियी के नारकों के शितली लेश्याएं होती है ? हे गौतम ! अधः ससमी पृथिवी के नारको के केवल एक परम कृष्ण लेश्या ही होती है। तदुक्तम्-'कहो.' इत्यादि अर्थात रत्नप्रभा और शर्कराप्रभा, इन दोनो धिषियों में कापोत लेश्या होती है, मी नीलेश्या 'ते बहुतरका जे नीललेस्सा' माथी धूमप्रमा पृथ्वीमा नील वेश्यावा ना धारे ७५ छ. २५ने 'वे थोवतरका जे कण्हलेसा' लेश्या વાળા નારક જીવો ઓછા હોય છે. આની ભાવના પહેલા કહ્યા પ્રમાણે સમજવી.
'तमाए पुच्छा' है गन् तमासा पृथ्वना नैरयिह सी वेश्यावामा डाय छे ? 'गोयमा एक्का किण्हलेस्सा' हे गीतम ! ये पर वेश्या । તેમને હોય છે અને આ કૃષ્ણ લેશ્યા ધૂમપ્રભ પૃથ્વીમાં કહેલી કૃષ્ણલેશ્યાની अपेक्षा अविशुद्धतर डाय छे. 'अहे सत्तमाए एक्षा परमकिण्हलेस्सा है ભગવન અધઃસપ્તમી પૃથ્વીના નારકને કેવળ એક પરમ કૃણ લેશ્યાજ હોય