Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रमेयद्योतिका टीका प्र.३ २.१९ सप्तापि पृथ्वीनां परस्परापेक्षया बाहल्य॑म् १५७ वाहल्येनापि पिण्ड भावेन ‘णो तुल्ला-सदृशी न भवति रत्नप्रभाया अशीतिसहस्रो. त्तरलक्षयोजनमानत्वात् शर्करामभायाश्च द्वात्रिंशत्सहस्रोत्तरलक्षयोजनमानत्वात् किन्तु शर्कराप्रमापेक्षया रत्नपमा बाहल्येन विशेषाधिका भवति, किन्तु 'नों संखेज्जगुणा' संख्येयगुणाधिका न भवति रत्नपभाया अष्टचत्वारिंशत्सहस्रयोजनमात्रस्यैवाधिक्येन संख्येयगुणत्वाभावात् इति । 'वित्थारेणं नो तुल्ला' रत्नपमा पृथिवी शर्करा प्रभापृथिव्यपेक्षया विस्तारेण विष्कम्भेनापि न तुल्या किन्तु'दिसेसहीणा' विशेषहीना किन्तु 'णो संखेनगुणहीणा' संख्येयगुणहीना न, अस्या हीनत्वे संख्येयगुणत्दामावाद, प्रदेशादि वृद्धया प्रवर्द्धमाने तावतिक्षेत्रे शर्करापभाया एव वृद्धिसंभवादिति 'दोच्चा णं भंते ! पुढनी द्वितीया खल्लु शर्कराममा 'बाहल्लेण णो तुलो' मोटाई में बराबर नहीं है क्योंकि रत्न प्रभा पृथिवी की मोटाई एक लाख अस्सी हजार योजन की है और शर्करा प्रभा की मोटाई एक लाख बत्तील हजार योजल की है अतः आपस में दोनों में समानता नहीं है प्रत्युत शर्करा प्रला की अपेक्षा रत्नप्रभा पृथिवी ही मोटाई में विशेषाधिक है यह कि संख्यात गुणी अधिक उसकी अपेक्षा इसलिये नहीं हो सकती है कि शर्करा प्रभा की अपेक्षा इसकी मोटाई केवल अडतालीस हजार योजन ही अधिक है 'विस्थरेण नो तुल्ला' रत्नप्रभा पृथिवी शर्कराप्रभा की अपेक्षा विस्तार में भी बराबर नहीं हैं किन्तु यह विशेष हीन ही है 'णो खेज्ज गुणहीणा' इसलिये वह संख्यात गुण हीन नहीं है क्योंकि प्रदेश आदि की वृद्धि से प्रवर्धमान उसने ही क्षेत्र कार्करा प्रभा की वृद्धि होती है।
दोचनाणं मंते ! पुढची तच्चं पुढदि पणिहाय कि बाहल्लेण तल्ला પહોળાઇથી બરાબર નથી. કેમકે રત્નપ્રભા પૃથ્વીની પોળાઈ એક લાખ એસી હજાર જનની છે. અને શર્કરપ્રભા પૃથ્વીની પહોળાઈ એક લાખ બત્રીસ હજાર જનની છે. તેથી પરસ્પરમાં બનેમાં સરખાપણું નથી. બલકે શર્કરા પ્રભા કરતાં રત્નપ્રભા પૃથ્વીની પહેબઈ વિશેષાધિક છે. આ કારણથી તેના કરતાં સંખ્યાત ગણી વધારે તે થઈ શક્તી નથી. શર્કરપ્રભા કરતાં તેની પહોળાઈ ४१७ मतालीम २ यान पधारे छे. 'वित्थरेण' नो तुल्ला' २त्नप्रसा પવી શર્કરા પ્રભા પૃથ્વી કરતાં વિસ્તારમાં પણ બરાબર નથી. પરંતુ તે વિશેષ डीन छ. 'णो संखेज्जगुणहीणा' तथा ते ज्यात गुहीन नथी. महे પ્રદેશ વિગેરેની વૃદ્ધિથી વધતા એટલાજ ક્ષેત્રમાં શર્કરા પ્રભા પૃથ્વીની વૃદ્ધિ થાય છે
'दोच्चा णं भंते ! पुढवि पणिहाय कि बाहल्लेणं तुल्ला एवं चेव भाणि